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गुरुवार, 19 जुलाई 2018

श्रीखंड कैलाश यात्रा ।भाग-1 संगरूर से थाचडू तक

नमस्कार दोस्तो मैं रुपिंदर शर्मा संगरूर पंजाब से हूँ ।मुझे पहाड़ बचपन से ही बहुत अच्छे लगते हैं और जैसे जैसे उम्र बढ़ती गई पहाड़ो से प्यार भी बढ़ता गया । वैसे तो मैं पहाड़ो पर काफी घुमा हूँ पर आज मैं अपनी श्रीखंड कैलाश यात्रा के कुछ अनुभव आप के साथ सांझा करूँगा । श्रीखंड महादेव की यात्रा काफी कठिन मानी जाती है तो इसकी तैयारी भी बहुत करनी पड़ती है मतलब सैर वगैरा । तो मैंने भी सुबह 4:30 का अलार्म सेट कर दिया और घर पर बोल दिया कल से मैं रोज सुबह सैर करने जाऊंगा। अलार्म अपने तय समय पर रोज बजता । मैं पहले 4 दिन तो  सैर पर गया क्योकि नया नया जोश था पर उसके बाद ना तो मैंने अलार्म बन्द किया न सैर की । लेकिन कोशिश हर रोज करता के कल पक्का जाऊंगा पर गया  कभी नही ।हाँ इस चक्कर मे पत्नी और माता जी से रोज लेक्चर सुनता ।पत्नी जी ने तो बोल दिया जा तो सैर पर जाओ नही अलार्म तो बन्द करदो इसकी वजह से मुझे रोज जल्दी उठना पड़ता है ।पता नही क्या चक्कर था मुझे कभी अलार्म सुनता ही नही था अगर सुनता ही नही है तो उठू भी कैसे।
वैसे यात्रा की ये तयारी पूरा साल चलती रही इस यात्रा पर मेरे साथ जाने वाले मेरे 4 साथी थे। उनमें से बब्बू और अक्षय दोनो तो शुरू से तैयार थे बाकी दो एक मेरे जीजा जी और एक चंडीगढ़ से शंकर जोशी यात्रा से कुछ दिन पहले तैयार हुए थे ।यात्रा जितनी कठिन है उससे कहीं ज्यादा कठिन इसे हमने बना दिया था । हमने सोचा जब यात्रा आधिकारिक तौर पर शुरू होगी तो भीड़ बहुत होगी और सावन में बारिश का भी बहुत चक्कर पड़ता है तो हम ने फैसला किया यात्रा को पहले किया जाए और जो भी जरूरत का सामान हो उसको खुद लेकर जायेगे खुद लेकर जाने का मतलब कोई पोटर भी नही करना ।
तो जाने से पहले सामान और ट्रैक की जानकारी इकठ्ठी करनी शुरू की सामान में स्लीपिंग बैग और टेंट खरीदे गये और खाने में बिस्किट नमकीन और घर पर बनी मट्ठी और गुलगुले पैक किए गए । कुछ मैग्गी भी रख ली और उसे बनाने के लिए एक बर्तन रख लिया । मैगी आग के बिना तो बनेगी नही इस लिए फ्यूल जैली ले ली । और ट्रैक की जानकारी के लिए जाट देवता जी के श्रीखंड यात्रा के ब्लॉग को 10,15 बार पड़ लिया गया।यात्रा से कुछ दिन पहले अक्षय जाट देवता जी से मिला था उन्होंने अक्षय भाई को बोला भी था जब यात्रा में लंगर लगेंगे तब जाओ आसानी होगी पर हम तो बस एक बात पर अड़े थे भीड़ में नही जाना है ।  यात्रा का दिन भी नजदीक आ गया तो पैकिंग शुरू कर दी जब सब साथियो से पूछा आप के बैग का बजन कितना है तो जीजा जी के बैग का बजन 11 किलो सब से ज्यादा था और मेरा 6 किलो सब से कम था ।मेरे में कम इस लिए था मैंने सिर्फ रेन कोट और एक पेन्ट शर्ट रखे थे एक जैकेट और एक इनर ज्यादा सामान चड़ाई में तंग करता है । इस के इलावा स्लीपिंग बैग थे  ये सभी के पिट्ठू बैग से अलग थे । टेंट को हम मिल बांट कर उठाने वाले थे।और थोड़ा बहुत खाने के सामान था ।
इन सब के बीच जाने का दिन 16 जून भी आ गया  । सब साथियो ने चंडीगढ़ बस स्टैंड में इकठा होना था । शाम 7 बजे की बस थी चंडीगड़ से रामपुर की। मैं बब्बू और जीजा जी संगरूर से दोपहर 3 बजे चल पड़े। अक्षय ने लालड़ू हरयाणा से आना था जो चंडीगड़ के पास में ही है। हम तीनों 6:15 पर चंडीगड़ बस स्टैंड पहुंच गए थोड़ी देर बाद अक्षय भी आ गया। तभी बहुत तेज बारिश शुरू हो गई पहले काफी गर्मी थी अब बारिश की वजह से ठंड हो गई थी। शंकर जोशी को फ़ोन किया तो वो एक दोस्त के साथ गाड़ी में आ रहा था ।  हमारी सब की बस टिकट पहले से ही बुक थी तो अक्षय और बब्बू ये पता करने चले गए के बस कौन से काउंटर पर आ रही है। उन्होंने हमें आ कर बताया बस 29 नंबर पर आएगी पर जब 7 बजने में 5 मिन्ट रह गए और बस काउंटर पर नही आई तो हमने दुबारा पता किया तो पता चला बस तो 26 नम्बर पर लगी हैं। हमारे बस में बैठते ही बस चल पड़ी अगर 2 मिनट और लेट हो जाते तो बस निकल जाती बस तो चलो 8 बजे वाली भी आ जाती पर टिकट के पैसे नहीं आने थे । बारिश की वजह से मौसम में ठंडक आ गई थी तो बस में कोई ज्यादा परेशानी नही हुई
रास्ते मे बस खाने के लिए ढाबे पर रुकती है । हमारा खाना तो अक्षय भाई घर से पैक करवा कर लाये थे अरबी की सब्जी और परांठे सभी ने बस में बैठ कर ही खा लिए ।सब्जी बहुत टेस्टी बनी थी फिर कभी दुबारा मौका देंगे अक्षय जी को खाना खिलाने का ।जब सभी सवारियां खाना खा कर बस में आ गई तो बस दुबारा चल पड़ी । सभी को नींद तो आ रही थी पर लगातार लग रहे झटके तंग कर रहे थे । मुझे और  बब्बू को तो वैसे भी बस में नींद नही आती । जब बस शिमला से आगे गयी  तो एकदम से ठंड बहुत बढ़ गयी इतनी ठण्ड तो हमे श्रीखंड शिला के पास नही लगी जितनी बस में लग रही थी तो जल्दी जल्दी बैग में से जैकेट निकाली गई तो कुछ गर्माहट मिली। शिमला में बस आधी खाली भी हो गई थी तो हम सभी खाली सीटो पर लेट गए ।थोड़ी देर बाद जीजा जी को बाथरूम आया तो मैंने उनको एक खाली बोतल दी और कहा बस की लास्ट सीट पर जाकर काम निपटा लो और उन्होनो ने बात मान ली।  कोशिश तो बहुत की सोने की पर नींद आ ही नही रही थी तो  मैं और बब्बू बाते करने लगें ।कुछ देर बाद कंडक्टर ने आवाज लगा दी रामपुर वाले तैयार हो जाओ बस स्टैंड आने वाला है । तो हम सभी अपना सामान इकठा करने लगे बस स्टैंड पर उतर कर हम ने सब से पहले जाओ को जाने वाली बस का पता किया वो 8 बजे के बाद आने वाली थी। अभी समय बहुत था हमारे पास तो हम सामान को एक तरफ रख कर आराम करने लगे ।इतने में सफाई करने वाले आ गए और हमे समान उठाने को बोलने लगे तो हमने अपना सामान उठा कर साइड में किया । अब सोचा सो कर क्या करेंगे ।और बारी बारी से फ्रेश  होने के लिए शौचालय में चले गए ।अभी भी बस के आने में बहुत समय था तो हमने सोचा टैक्सी कर लेते हैं। एक दो टैक्सी वालो से पता किया एक टैक्सी वाले ने 1500 रुपये मांगे बस के किराये से तो बहुत ज्यादा थे पर अगर समय को देखे तो बस के मुकाबले  बहुत जल्दी जाओं  पहुंच जाते । सलाह मशविरा करने पर सब टैक्सी से जाने को मान गए  अगर बस से जाते तो 1 बजे से पहले यात्रा शुरू नही कर सकते थे टैक्सी से हम 8 बजे के करीब  ही जाओं पहुंच गए। वैसे रामपुर से जाओं तक सुरु में थोड़ा खराब है फिर बडिया सड़क आ जाती है ।रामपुर से जब सतलुज को पार करके दूसरी तरफ जाते है तो हम कुल्लू जिला  में पहुंच जाते है।रास्ते मे  सेब के पेड़ बहुत दिखते है अभी सेब छोटे थे डेड महीने के बाद पक्केगे ये ।जाओं पहुंच कर हम यात्रा शुरू करने से पहले  कुछ खाना चाहते थे। इस लिए  एक चाय की दुकान पर रुक गए खाने के बारे में पता किया तो वो बोला में बना दूंगा परांठे ।उसको 5 चाय और 10 आलू के परांठो का ऑडर दिया चाय तो उस ने दुकान पर ही बना दी पर परांठे के लिए अपने घर पर फ़ोन कर दिया ।हमने जब चाय पीने के कई सौ सालों के बाद परांठो के बारे में पूछा तो बोला अभी थोड़ा और समय लगेगा ।इतने समय मे तो दुबारा अपने घर जाकर खा आते खाना।हमे बहुत गुस्सा आ रहा था पर अब क्या कर सकते थे तो मैंने बब्बू और अक्षय को बोला आप परांठे ले कर आ जाना अब बराटी नाले पर जा कर ही खायेगे। तब तक मैं, जीजा जी और शंकर जोशी चलते हैं तो हम तीनों चल पड़े भोले बाबा के दर्शन करने के लिए सब से पहले एक पुल पार करना पड़ता है। शुरुआत में चढ़ाई ज्यादा नही है आराम से चलते रहे अक्षय और बब्बू पीछे थे इस लिए भी जल्दी नही की ।मैं सबसे आगे चल रहा था थोड़ी देर बाद याद आया पानी तो लिया ही नही इस लिए काफी देर प्यासा ही रहना पड़ा पर रास्ते मे एक जगह पानी का एक छोटा जा नाला मिला वहाँ पानी पिया ।थोड़ी देर बाद सिंघहार्ड नामक  जगह आई जहा यात्रा के समय रजिस्ट्रेशन होती है पर अब ये जगह बिल्कुल सुनसान थी यहाँ पर कमरे बने हुए हैं।और एक बड़ा सा शेड बना है यहाँ पर कुछ लोग लंगर लगाने के लिए तयारी कर रहे थे।यहाँ शंकर जी की मूर्ति भी बनी है उनको नमस्कार किया और फिर आगे चल दिया ।जीजा जी और जोशी जी पीछे आ रहे थे ।थोड़ी देर बाद वो जगह आई जहाँ आगे जाने के लिए लेंटर डाल कर रास्ता बनाया हुआ है इसको भी पार कर लिया ।अब  हल्की बूंदाबांदी  होनी शुरू हो गई तभी बाकी चारो भी आ गए ।हल्की बारिश हो रही थी तो  रेनकोट पहन लिए ओर फिर आगे की ओर चल पड़े।
 थोड़ा चलने पर हमें लोहे की सीढ़ियां दिखाई दी नीचे की ओर उतरती हुई । हम सीढ़िया उतरने लगे और उतरते ही बराटी नाले पर बना बाबा जी का आश्रम आ गया हमारे आश्रम पहुचते ही बारिश तेज हो गई । हमने अपने सामान को साइड में रखा और बाबा जी से खाने के बारे में पता करने लगे लंगर अभी तयार नही था पर चाय मिल गयी और हमारे पास आलू के परांठे तो थे ही। सभी ने 2 -2 परांठे ले लिए पर जब खाने लगे तो लाख कोशिश करने पर भी परांठो में से आलू नही मिले हाँ पर जीजा जी को एक मिर्च का टुकड़ा जरूर मिल गया ।पर जैसे भी थे परांठे खा कर भूख को शांत किया अभी तक सुबह से कुछ भी नही खाया था सिर्फ एक एक कप चाय पी थी।अब बारिश भी रुक गई थी तो चल दिये आगे की और बराटी नाले के बाद चढ़ाई भी शुरू हो जाती है वैसे मुझे चड़ाई में कोई खास दिकत नही होती है पर उतरते समय बहुत मुश्किल होती है । अक्षय बब्बू और जोशी आगे चल रहे थे मैं ओर जीजा जी पीछे हमारे सभी के पास करीब करीब12 किलो वजन सभी के पास था चड़ाई ज्यादा और पानी सिर्फ 3 लीटर के करीब जैसे जैसे चड़ाई चढ़ते गए जीजा जी पीछे रहते गए जब वो काफी पीछे रह जाते थे तो हम चारो एक जगह रुक कर जोर जोर से जीजा जी को आवाज लगाते इससे हमें पता चलता रहता के वो पीछे आ रहे हैं। कई बार जब हम आवाज लगते तो वो कोई जवाब नही देते थे तो जब वो पास आए तो हम नहे कहा जवाब तो दे दिया करो ता के हमे पता चलता रहे आप आ रहे हो तो वो बोले इतनी चड़ाई पर सांस बड़ी मुश्किल से ले रहा हूँ आवाज कहा से मरूँगा तुम लोग चलते रहो मैं आ जाऊंगा। इस चड़ाई पर हमने देखा पानी की लोहे की पाईप तो बिछाई हुई है पर उसमे पानी नही था अगर पाईप है तो रास्ते मे टोंटी लगा कर पानी की सप्लाई भी होनी चाहिये थी ता के यात्रियों को पानी की कमी ना हो । अब जीजा जी काफी पीछे रहने लगे थे उनके एक घुटने में तो पहले से ही प्रॉब्लम थी इस चड़ाई ने और दिक्कत शुरू कर दी अब अक्षय ,बब्बू और जोशी को आगे जाने को बोल कर मैं रुक गया और जीजा जी का इंतजार करने लगा 20 मिनट के बाद वो आ गए अब मुझे लगा ये वजन उठा कर ज्यादा नही चल सकते तो इनका बैग भी मैंने उठा लिया । अब मेरे पास 25 किलो से ज्यादा वजन था । अब इतना वजन था तो मेरी स्पीड भी कम हो गयी थी। हम दोनों आराम से चल रहे थे बीच बीच मे अक्षय और बब्बू को आवाज़ लगा कर बता देता था कि हम आ रहे हैं । रास्ते मे एक जगह जोशी बैठा था उसको मैंने थाचडू में टेंट लगाने का बोल कर आगे भेज दिया थोड़ी देर बाद जीजा जी भी आ गए । यहाँ पर बैठ कर थोड़ा आराम किया भूख लग रही थी तो बिस्किट खाये। जो लोग इस यात्रा पर गए है उनको ही पता है ये चड़ाई इंसान का क्या हाल करती है घोड़े और खच्चर बच गए जो इस यात्रा में नही होते नही तो वो भाग जाते ऐसी चड़ाई देख कर । अब फिर से चलना शुरू किया वजन ज्यादा होने से थोड़ा रुक रुक कर चल रहे थे । रास्ते मे आते जाते भी सिर्फ कभी कभी लोकल लोग मिल रहे थे वो भी अभी दुकानों के लिए समान ले कर जा रहे थे । अब तो हल्का हल्का अंधेरा भी होने लगा था अब आवाज़ लगाने पर बब्बू और अक्षय का भी कोई जवाब नही आता था । वो काफी आगे निकल गए थे ।अब 4 घंटे से ज्यादा हो गया था जीजा जी का सामान उठाए हुए अब उनको उनका सामान वापिस किया तो थोड़ा हल्का महसूस हुआ। आधा घंटा और चलने पर हमे कुछ टेंट लगे नजर आए आवाज़ देने पर बब्बू टेंट से बाहर आ गया जब वो नजर आया चलने की गति और कम हो गई पता था अब तो पहुंच ही गये है। 5 मिनट का रास्ता 15 मिनट में बड़ी मुश्किल से तय किया।किसी दुकान वाले ने एक बड़ा सा टेन्ट लगा कर खाली छोड़ रखा था इसी के अंदर हमारे तीन टेंट लगा रखे थे इन्होंने। जाते ही समान फैंका और टेंट में घुस गए सब से पहले गिले कपड़े बदले। बारिश से नही पसीने से गीले हुए थे। गीले कपड़े बाहर रख दिये बड़ा टेंट तो था बाहर इस लिए बारिश का डर नही था और रात भर में हवा से सुख भी जाएंगे । अब बारी आई खाने की तो जो घर से गुलगुले और मठियाँ लाये थे उन्ही से काम चलाया गया मैगी कल बना लेंगे आज हिम्मत नही है।जो पानी नीचे से लाए थे वो तो खत्म हो गया था सारा पानी जीजा जी पी गए थे ।बब्बू ने बताया यहाँ पानी की बाल्टी पड़ी है पर उसको कुत्ते ने जूठा कर दिया है दरसल एक कुत्ता जाओं से ही हमारे साथ आ रहा था। थोड़ा खाना इसे भी दिया गया ।रात को बिना पानी पिएं ही सो गए।
श्रीखण्ड यात्रा का दूसरा भाग पड़ने के लिए यहाँ क्लिक करे
     बराटी नाले के पास खिची गयी थी
        थाचडू की चड़ाई पर कही
     सिंघहार्ड में शंकर जी की मूर्ति
        थाचडू की चड़ाई पर कही

        थोड़ा आराम भी जरूरी है



नीचे अक्षय सेल्फी लेते हुए बब्बू सफ़ेद टीशर्ट में टोपीवाले शंकर जोशी नीली टीशर्ट में मैं और पीली टीशर्ट में जीजा जी

13 टिप्‍पणियां:

  1. वाह भाई

    बहुत अच्छा लिखा आपने।
    विमल बंसल ओर कनु अग्रवाल जी का भी जिक्र कर देना चाहिए था जी

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    1. भाई कन्नू का सोचा था फ़िर पता नही क्यू नही किया मैंने

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  2. बहुत बड़ीया sir, बहुत अच्छे से explain की यात्रा next part का wait रहेगा, ये Jaat देवता kon hai sir

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    1. धन्यवाद जी।
      जाट देवता जी घुमक्कड़ी में हमारे गुरु की तरह ही है इनके ब्लॉग पड़ोगे तो आप भी इनके फैन हो जाओगे

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    2. धन्यवाद जी।
      जाट देवता जी घुमक्कड़ी में हमारे गुरु की तरह ही है इनके ब्लॉग पड़ोगे तो आप भी इनके फैन हो जाओगे

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  3. very interesting description,will wait for upcomimng travelogue

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  4. It very nice bro.. it real when you are in inner mind .. like it.👌👌👌👌🎇🎇🎇

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