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मंगलवार, 31 जुलाई 2018

श्रीखंड कैलाश यात्रा भाग -4 भीमद्वारी से घर

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पूरी रात मुश्किल से कटी टांगे पूरी अकड़ गई थी। सुबह उठे तो रजाई से निकलने का मन नही कर रहा था ।मेरी टांगे इतनी दर्द कर रही थी कि दिल कर रहा था आज सारा दिन यही लेटा रहूँ।लेकिन घर तो जान ही पड़ेगा तो सब से पहले चाय बनवा कर पी फिर सामान पैक करने लगे ।जो कपड़े कल पहने थे वो सारे गीले हो गए थे और मेरे पास सिर्फ एक शर्ट ही थी जो पहन रखी थी इस लिए पैंट की जगह मैंने रेनकोट वाली पैंट ही पहन ली।अब बाकी सारा सामान पिठु बैग में डालना था लेकिन कपड़े गीले होने की वजह से पूरे कपड़े बैग में बड़ी मुश्किल से आये और जैकेट तो बाहर ही रह गई चलो इसको ऐसे ही उठा लूंगा। तभी शंकर जोशी भी आ गया।हमारे पास कुछ मैगी के पैकेट थे हमने वो रोहित की दादी को दे दिए बनाने के लिए तब तक हमने पैसो का हिसाब कर लिया ।मैं और बब्बू तो 2 दिन बाद  आज बाहर हल्के होने के लिए चले गए ।जितना आराम पेट साफ होने पर आया उतनी ही तकलीफ पानी के ज्यादा ठण्डे होने के कारण हुई।वापिस टेंट में आए तो मैगी भी बन गयी थी सभी ने मैगी खाई ।रोहित और उसकी दादी आज नीचे जा रहे थे हमने बोला हमारे साथ चलो तो वो बोले हमे  जल्दी है आप धीरे धीरे आ जाना हम चलते है।मैगी खाने के बाद हम ने अपना सारा सामान चेक किया कुछ छुटा तो नही और चल पड़े वापिस नीचे  की और।
        मौसम बिल्कुल साफ था धूप खिली हुई थी और हमारे चेहरे भी हमारे मतलब सिर्फ मेरे और बब्बू के अक्षय और जोशी को दर्शन नही हुए थे इस लिए वो थोड़े उदास थे।हमने एक बार भोले का जैकारा लगाया ।अभी रास्ता ठीक था ज्यादा मुश्किल नही था पर मेरे घुटनो में अब भी तकलीफ थी लेकिन हम चलते रहे। जोशी आज भी आगे निकल गया । इस आदमी को ग्रुप में यात्रा करने का बिल्कुल भी नही पता था।लेकिन हम तीनों आराम से चलते रहे।थोड़ी देर बाद वही जगह आ गई जहां पर हमने जाते हुए घर फ़ोन किए थे अब दोबारा फ़ोन चैक किए पर नेटवर्क नही था ।तभी हमे दो लोकल लड़के फ़ोन पर बात करते हुए मिले हमने उनसे फ़ोन मांगा तो उन्होंने बड़े प्यार से फ़ोन दे दिया। हमने अपने अपने घर फोन पर बात की ।ये दोनों भाई थे और भीम द्वारी में दुकान लगा रहे थे अभी नीचे से  सामान लेने जा रहे हैं। चलते चलते हम बाते भी करते रहे ।इन्होंने बताया ये पहली बार टेंट लगा रहे है ।इनको 2 लोगो वाले टेंट लेने थे इस लिए हमने इनको अपने टेंट बेचने की बात कर ली और ये मान गए।थोड़ा चलने के बाद मुझे चलने में फिर तकलीफ होने लगी ।तो एक लड़के ने मेरा बैग उठा लिया और दूसरे ने बब्बू का अब कुछ आराम मिला।
        जोशी तो अब दिखाई भी नही दे रहा था पत नही क्या जल्दी थी उसे नीचे जाने की ।लेकिन मुझे न तो कोई जल्दी थी न ही हिम्मत थी कि जल्दी नीचे उतर जाऊ। थोड़ी देर तो सब साथ ही चलते रहे पर फिर  बब्बू भी आगे निकल गया अक्षय भी थोड़ा आगे ही चल रहा था।पर ये दोनों रुक जाते थे ता के मैं पास आ सकू।आज भी यात्री कम और नेपाली ज्यादा मिल रहे थे।जितना उत्साह हमे यात्रा पर ऊपर जाते हुए होता है वापिस आते हुए उतना नही रहता ।अब चलते चलते कुंशा भी आ गया पर यहाँ रुक कर क्या करना था इस लिए चलते रहे।अब वो दोनों लोकल लड़के और बब्बू आगे निकल गए काफी आगे ।अक्षय थोड़ा ही आगे चल रहा था और मैं तो रेंग ही रह था जो मेरी स्पीड थी उसे चलना तो बोल नही सकते इस लिए रेंग रहा था लिखा। अब भीम तलाई आ गया यहाँ पर दो कुत्ते हमारे साथ चल रहे कुत्ते पर भोकने लगे मुझे लगा अब इनकी लड़ाई होगी। अगर वो कुत्ते मेरी तरफ आ गए तो मैं क्या करूँगा जिस हालत में हूँ भाग भी नही सकता।लेकिन ये आपस मे ही भोंकते रहे  ।भीम तलाई के बाद एकदम सीधी चड़ाई आ गई ।अक्षय बोला रुपिंदर भाई अब तो चड़ाई आ गयी और आप को तो चड़ाई अच्छी लगती है अब तो खुश हो पर अब मेरी जो हालत थी उस हिसाब से चड़ाई भी मुझे बुरी लग रही थी।एक पंगा यहाँ पर ये भी था हम सही रास्ते की जगह शॉटकट पर चल पड़े ।ये हमने जानबूझकर नही किया था बल्कि गलती से हो गया।रास्ते मे हल्की सी स्लाइडिंग की वजह से पत्थर ही पत्थर थे ।ये स्लाइडिंग पहले हुई होगी कभी। चड़ते समय पथर भी सरक रहे थे ।अब बब्बू भी काफी देर से  दिखाई नही दे रहा था वो दोनों लड़के भी आगे चले गए थे। धूप की वजह से गर्मी भी बहुत हो गई थी । एक दो जगह तो हमे पता ही नही चला कि अब किस तरफ जाए अक्षय आगे था तो वो मुझे पूछता भाई अब किधर जाए तो एक बार रुक कर आराम से देखते फिर कोई निशान दिखता तो उस तरफ चलते। अब हम सही रास्ते पर आ गए थे ।जब भी कोई नेपाली मिलता तो उस से पूछते भाई काली घाटी कितनी दूर है तो वो बोलता 10 मिनेट में पहुँच जाओगे पर हम एक घंटे में पहुंचे। जब काली घाटी पहुंचे तो बब्बू और जोशी वही थे । यहां पर  चाय पी और साथ मे कल का बचा थोड़ा सा नमकीन भी खाया। जहाँ पर दुकान वाले से जीजा जी के बारे में पूछा तो उसने बताया वो तो कल सुबह ही थाचडू चले गए थे।हम यहाँ थोड़ी देर आराम करने के बाद चल पड़े ।आराम करने की वजह से अब कुछ अच्छा लग रहा था और रास्ता भी बडिया था हम तेजी से नीचे उतरने लगे यहाँ  भी ये तीनो मेरे से आगे निकल गए मैं अपनी स्पीड से चलता रहा ।काली घाटी से थाचडू तक का रास्ता ज्यादा मुश्किल नही है ना तो जाते समय न आते समय। कुछ देर बाद थाचडू भी आ गया तीनो उसी दुकान में बैठे थे जहाँ जाते समय हम अपना सामान छोड़ कर गए थे। यहाँ पर हमने थोड़ा आराम किया जो सामान छोड़ा था उसे उठाया और जीजा जी के बारे में पूछा तो दुकान वाले ने बताया वो तो कल ही नीचे चले गए थे।तभी जीजा जी का फ़ोन भी आ गया वो तो जाओ से भी चले गए थे पूछ रहे थे रामपुर रुकू जा न मैंने बोला आप निकल लो हम आ जायेंगे।
यहां पर भी जोशी ने अपना पागलपन दिखा दिया जो लड़के हमे ऊपर मिले थे उन्हें मैंने एक टेंट 2500 का बेच दिया था वो दो टेंट मांग रहे थे एक मेरा और बब्बू का था एक जोशी का  जोशी भी बेचने के लिए मान गया था जिस दुकान में हम अब रुके थे उसने भी टेंट मांग लिया पर वो एक टेंट ही ले रहा था ।जोशी ने उसे 2000 में दे दिया जब के मैं 2500 में बिकवा रहा था। तभी वो लड़के बोले हम एक टेंट नही लेंगे हम दोनों लेंगे ।फिर बड़ी मुश्किल से जोशी का वो टेंट वापिस लिया और मैंने फिर जोशी को बोला भी भी जब हमारी बात उन लड़कों के साथ हो गयी तो तुमने इस दुकान वाले को टेंट क्यों बेचा वो भी 500 कम में और ऊपर से उन लड़कों के सामने अब वो लड़के भी 2000 का टेंट मांगेंगे। चलो दुकान वाले से टेंट वापिस लेकर हम नीचे की और चल पड़े। सबसे आगे जोशी फिर बब्बू फिर वो लड़के फिर अक्षय और आखिर में मैं चल रहा था। 
आज से पहले मुझे कभी घुटनो में इतनी तकलीफ नही हुई थी मैने दो बार अमरनाथ यात्रा बालटाल और पहलगाम दोनो तरफ से मणिमहेश और पिछले साल किन्नर कैलाश की थी वैष्णोदेवी भी बहुत बार गया हूँ ।इस बार शायद थाचडू की चड़ाई पर जीजा जी काऔर अपना बैग उठाने के कारण ये हाल हुआ है। थाचडू के बाद पेड़ फिर शुरू हो गए थे इस लिए धूप नही लग रही थी ।अब ये सभी मेरे से काफी आगे निकल गए थे मैं धीरे धीरे चल रहा था। अब मुझे न कोई चढ़ता हुआ मिल रहा था न कोई उतरता हुआ मैं बस अकेला चल रहा था मेरे पास सिर्फ 300 ml की बोतल थी पानी की ।
  मुझे 1 घण्टे से ज्यादा हो गया था चलते हुए इस जंगल मे बिल्कुल अकेला उसके बाद मुझे कुछ नेपाली उतरते हुए मिले मैंने उनसे पूछा बराटी नाला कितनी दूर है वो बोले 1 घंटे में पहुंच जाओगे। करीब करीब 1 घंटे बाद मुझे दो आदमी दुकान के लिए टेंट लगाते हुए मिले उनसे फिर पूछा बराटी नाला कितनी दूर है बोले 1 घण्टे से ज्यादा लगेगा भाई बराटी नाला भी चल  रहा है क्या एक घण्टे पहले भी यही उत्तर मिल था मुझे वो भोले आप की जो स्पीड है उस हिसाब से आप एक घण्टे में भी मुश्किल से पहुंचोगे । प्यास बहुत लग रही थी पानी सिर्फ 100ml बचा था सोचा जब तक बिना पानी के चल सकता हूँ तब तक इसे बचा कर रखूंगा ।
शाम हो गयी थी अब तो सिर्फ  पंछियो की आवाजें ही सुनाई दे रही थी ।दिल कर रहा था यही किसी दुकान में सो जाऊ सुबह चला जाऊंगा एक दो दुकाने मिली भी पर पैसे तो बैग में थे और बैग वो लड़को के पास था एक बार सोचा अपना छोटा फ़ोन दे दूंगा और कहूंगा भाई इस के बदले में एक रात गुजार लेने दो आपके टेंट में। फिर  सोचा थोड़ा और चल लेता हूँ फिर देखूंगा ।अब तो कोई नेपाली जा लोकल भी मिलने बन्द हो गए थे मेरी स्पीड बहुत कम हो गई थी ।तभी दो लड़के आते हुए मिले आते ही उन्होंने पानी मांगा मैंने अपनी बोतल दे दी वो बोले आप क्या पिओगे बराटी नाले तक पानी नही मिलेगा और आप 2 घण्टे तक नही पहुंच सकते अरे भाई पानी नही मिलेगा ठीक है पर ये क्या बोल दिया अभी और दो घंटे लगेंगे वहाँ तक ।वो बोले आप की जो स्पीड है उस हिसाब से 2 घण्टे में पहुंच जाओ तो अच्छा है अरे यार सभी मेरी स्पीड की बात क्यू करते है अब इसमें मैं क्या करूँ कैसे स्पीड बढाऊँ । चलो मैंने बोला एक घूंट छोड़ देना पानी बाकी पी लो 100-150 ml में से कितने क घूंट बनते उन्हो ने एक एक घूंट पिया एक दो घूंट मेरे लिए छोड़ दिया । मैंने इनसे अक्षय और बब्बू के बारे में पूछा वो बोले वो  आप से आधा घंटा आगे है । मतलब मेरी जिस स्पीड की वजह से मेरी दो तीन बार बेइजती हुई थी वो इतनी भी बुरी नही थी ।अब मुझे लगा थोड़ी तेजी से तो  चलना ही होगा नही तो अंधेरा हो जाएगा पर घुटनो में इतना दर्द था तेज चल ही नही पाया
 । अब हल्का सा अंधेरा होने लगा था तभी मुझे लगा आगे कोई जानवर बैठा है शायद भालू है।पहले तो मैं धीरे धीरे चल भी रहा था अब तो हालत खराब हो गई थी ।थोड़ी हिमत करके मैं चल पड़ा जब उस जगह पहुंचा तो देखा जिसे मैं भालू समझ रहा था वो तो एक पेड़ का जला हुआ तना था अब मेरी सांस में सांस आई । मैंने इस तने को देख कर सोच भी  ऊपर से किस एंगल से ये भालू लग रहा था।पर कई बार जब आप इस तरह के जंगल मे बिल्कुल अकेले चलते हो तो आप के मन मे ऐसे विचार आ ही जाते है।थोड़ा और चलने पर  एक जगह मुझे खाली टेंट लगा हुआ  मिला यहाँ रुकने के पैसे भी नही देने पड़ेंगे सोचा यही रुक जाता हूँ । फिर सोचा बब्बू और अक्षय मेरी फिक्र करेगे चलो करते है तो करने दो मैं तो यही सोऊंगा और सुबह जल्दी निकल जाऊंगा ।पर फिर भालू याद आ गया भालू याद आते ही सीधा चल पड़ा तभी मुझे हल्की सी आवाज सुनाई दी ये तो नाले के पानी की आवाज थी मतलब बराटी नाला पास ही है पर मेरी स्पीड काफी कम थी इस लिए काफी देर चलने पर नाला दिखाई नही दिया तभी फ़ोन की घंटी बजी अक्षय का था बोला कहा हो भाई मैंने कहा आधे घण्टे में पहुंच जाऊंगा ।थोड़ा ही चला था घर से फ़ोन आ गया बाते करते करते नाले के पास पहुंच गया। आश्रम से पहले एक छोटा सा मंदिर आता है उसके बाद एक पुल पार करके थोड़ा चलके आश्रम आता है पर जब इस मन्दिर के पास पहुंचा तो मुझे लगा मैं फ़ोन पर बाते करता हुआ गलत रास्ते पर आ गया जबकि रास्ता सिर्फ एक ही है ।अंधेरा भी काफी हो गया था मैंने अक्षय को फ़ोन लगाया फ़ोन नही मिला फिर बब्बू को फ़ोन लगाया उसका भी नही लगा ।मुझे याद ही नही रहा के हम इसी रास्ते से गये थे । थोड़ी देर बाद सोचा पुल पार कुछ तो होगा चलकर देखता हूँ थोड़ा चलने के बाद दूर रोशनी नजर आ रही थी पास पहुंचा तो ये बाबा जी का आश्रम था। अंदर जाते ही बब्बू और अक्षय को आवाज लगाई ये एक तरफ टेंट में बैठे थे मैं भी वही चला गया सामान रखा और इनके पास लेट गया । ये मेरे से कोई 45 मिनेट पहले पहुंच गए थे ।अभी अच्छी तरह लेटा भी नही था तभी एक आश्रम का सेवादार आकर बोला लंगर खा लो। दिल तो नही कर रहा था पर थोड़ा सा खा लेता हूँ सोच कर चला गया  ।खाना खा कर दुबारा वही आ गए लेटते ही दुबारा सेवादार बोला दूसरे कमरे में सो जाओ  यहाँ चूहे बहुत है ।बड़ी मुश्किल से खड़ा हुआ और दूसरे कमरे में चले गए वहाँ जाकर घुटनो पर मूव लगा कर गरम पट्टी बान्धी और स्लीपिंग बैग में घुस  गया ।यहाँ पर और भी काफी लोग थे इनमे से एक हरयाणा से भी था वो थाचडू भी नहीं पहुंचा था रास्ते मे से ही वापिस आ गया था ।वैसे भाई का शरीर भी थोड़ा साइज में बड़ा था इस लिए भी दिक्कत हुई होगी ।इन सब से थोड़ी देर बाते की फिर हम सो गए।
रात को नींद अच्छी आई पिछली रात नही सो पाया था इस लिए भी आज नींद आ गई थी।सुबह 5 बजे के करीब उठ कर चल पड़े जोशी भी रात यही रुका था ।आज फिर ये तीनो आगे और मैं पीछे था लेकिन आज मैं ज्यादा पीछे नही रहा आज मेरी स्पीड भी ठीक थी । सुबह जब बराटी नाले से चला था तो पानी की बोतल लेनी भूल गया था प्यास लग रही थी पर पानी नही था । आज काफी नेपाली ऊपर सामान लेकर जा रहे थे आज इनमे कुछ औरते भी थी। अब मैं सिंहार्ड  पहुंच गया यहां आज भी कोई नही था। मैं बिना रुके आगे निकल गया। थोड़ी देर बाद घर भी नजर आने लगे यहाँ पर लोग खेतो में काम कर रहे थे ।एक घर मे एक औरत छत पर खड़ी थी मैने उस से पानी मांगा उसने एक बोलत पानी दे दिया और बोली बोतल साथ ले जाओ रास्ते मे काम आएगी । थोड़ी दूर मुझे जोशी जाता हुआ नजर आया आज वो ज्यादा तेज नही चल रहा था।अब जाओ गाव भी पास ही था। आधा घंटा चलने के बाद मैं वही पहुंच गया जिस दुकान से हमने जाते समय चाय पी थी ।बब्बू ,अक्षय और जोशी यही बैठे थे। जाते ही सब सामान रखा और दुकान वाले को बेकार परांठो के लिए धन्यवाद किया ।एक एक कप चाय भी बनवा ली तब तक अपने फ़ोन चार्ज कर लिए और चाय पी कर  हम बस स्टैंड की और चल पड़े ।रास्ते मे हमे एक खुमानी का पेड़ दिखा बब्बू और अक्षय तो रुके नही पर मैंने और जोशी ने डण्डे से कुछ खुमानी तोड़ ली कुछ खा ली और कुछ उन दोनो के लिए रख ली।बस स्टैंड पर ही उन लड़कों की दुकान थी जिनको हमने टेंट देने थे।पर अभी  यहाँ पर उनके पिता जी थे तो उन्हें ही टेंट चैक करवा कर पैसे लिए ।थोड़ी देर बाद ही बस भी आ गई ।अब एक बार फिर भोले को नमस्कार किया और बस में चड़ गए बस में भीड़ बहुत थी कन्डक्टर बोला बाघीपुल जा कर बस खाली हो जाएगी और हमे बघिपुल तक खड़े खड़े ही सफर करना पड़ा।रामपुर आ कर जोशी तो सीधा चंडीगड़ वाली बस में बैठ गया मैं और बब्बू नहाना चाहते थे इस लिए एक कमरा लिया यही पर अक्षय भाई से पैसो का हिसाब किया और अक्षय  भी चला गया ।हम दोनों पहले नहाए फिर खाना खाया और बस मे बैठ गए रात को 2 बजे के करीब चंडीगड़ और वहां से 5 बजे वाली बस पकड़ कर 8 बजे घर पहुंच गए



गुरुवार, 26 जुलाई 2018

श्रीखंड कैलाश यात्रा भाग -3 भीम द्वारी से दर्शन करके वापिस भीम द्वारी

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रात को नींद अच्छी आई ।रात को हम तीनों एक ही टेंट में सोए थे टेंट दो लोगो वाला था पर सोए तीनो पर नींद इतनी अच्छी आई थी एक बार सोने पर पता ही नही चला। सुबह अलार्म बजा फिर आँख खुली। सुबह उठ गए तो सबसे पहले टेंट पैक किया और उसी दुकान में रख दिया जिस में रात को मैगी खाई थी। जब चाय बनाने को बोला तो दुकान वाले ने मना कर दिया बोला अभी नही बना सकता ।पर रात को तो बोला था बना दूंगा और कोई दुकान भी नही थी यहाँ ।चलो कोई बात नही बिन चाय काम चला लेंगे और फिर हम चल पड़े भोले के दर्शन करने ।अभी अंधेरा था तो टोर्च को भी काम मे लिया गया ।पास में ही पानी का नाला बह रहा था काफी तेज पानी था शोर भी काफी हो रहा था ।थोड़ी दूर जा कर इसे पार कर  दूसरी तरफ जाना पड़ता है।अब चड़ाई भी शुरू हो गई बिकुल सीधी यहाँ रास्ता भी थोड़ा पथरीला था।हमारे आगे भी कोई जा रहा था दूर से टॉर्च की रोशनी दिख रही थी ।हम तीनों भी आगे बढ़ते रहे ।ठंड की वजह से सांस भी फूल रही थी। थोड़ी देर बाद थोड़ी समतल जगह आई  ,और यहाँ पर जोशी टेंट में रुका हुआ था ।हमे लगा था ये पार्वती बाग में मिलेगा पर ये तो यहाँ पड़ा है अगर यही रुकना था तो आधा किलोमीटर पहले क्या दिक्कत थी।सबसे पहले इनसे पूछा आप भीम द्वारी क्यो नही रुके तो बोले आप सुबह बोल रहे थे पार्वती बाग में रुकेंगे मुझे लगा आप आ जाओगे ।उनको सुबह वाली बात याद रह गई पर दोपहर वाली याद नही रही ।वैसे सच ये था कि वो नही चाहता था हम उनके पास रुके ।अगर उनके पास रुकते तो हम में से एक उनके टेंट में सोता और वो ये नही चाहता था ।टेंट तो बहुत बड़ी बात है उस ने तो थाचडू की चड़ाई चड़ते समय बब्बू को झूठ  बोल दिया के मेरे पास तो पानी नही है बाद में जब खुद पानी पीने लगा तो बब्बू ने पूछा अब पानी कहा से आया तो बोला पी लो पानी । हमारी पहली गलती इस यात्रा में लंगर लगने से एक महीना पहले आने की थी और दूसरी जोशी को साथ लाने की थी । हमने जोशी को बोल दिया जल्दी आ जाना हम आगे जा रहे है ।थोड़ी देर बाद उजाला भी होने लगा। अब काफी दूर तक दिख रहा था और वो लोग भी दिखने लगे जो हम से आगे जा रहे थे वो चार थे। हम भी चार तो अभी तक कुल 8 लोग ही दर्शन के लिए जा रहे थे ।ठण्ड बहुत थी हाथ सुन हो रहे थे ।मेरे और अक्षय के पास तो दस्ताने भी नही थे ।मैने अपने बैग में से अपनी गर्म जुराबें निकाल ली एक अपने हाथ मे डाल ली एक अक्षय को दी ।मुझे तो काफी आराम मिला पर अक्षय को डंडा पकड़ने में दिकत थी तो उसने जुराब वापिस कर दी। हम सभी साथ में ही चल रहे थे जोशी भी आ गया था।अब वो चार जो हम से आगे थे हम उनके पास पहुंच गए थे ।उनमें से 3 लड़के और एक लड़की थी वो रेणुका जी हिमाचल से थे। काफी तयारी के साथ आये थे खाने का समान भी भी काफी था और हमारे पास जो सामान था वो भी हम भीम द्वारी छोड़ आए। थोड़ा सा सामान ही साथ लाए थे ।अब कभी हम आगे निकल जाते कभी वो चारो ।आज ठंड काफी थी ।हम चुप चाप ही चल रहे थे बाते करने का  दिल भी नही कर रहा था ।अभी तक ज्यादा रुके भी नही थे। कुछ देर बाद पार्वती बाग भी आ गया। जहाँ पिछले साल लगे टेंटो के निशान भी थे पर इस साल अभी तक कोई टेंट नही लगा था ।यात्रा समय यहाँ लंगर और प्राइवेट टेंट लगते है ।हम बिना रुके चलते रहे थोड़ी देर बाद रास्ता भी पथरो वाला आ गया। चारो तरफ पथर  पानी की सिर्फ एक छोटी सी बोतल थी हमारे पास उसी से काम चलाना था ।सारे रास्ते मे हमने सोच लिया था जो मर्जी हो जाये जोशी से पानी नही मांगना है ।हमारे साथ जो कुत्ता नीचे से आया था वो अभी भी हमारे साथ साथ चल रहा था ।एक कुत्ता उन हिमाचल वालो के साथ भी था उनके कुते के मुकाबले हमारा कुत्ता शरीफ था ।नीचे से लेकर अब तक एक बार भी नही भौंका था और जो भी हमने खाने को दिया वो आराम से खा लिया था ।अब पहली बार इसे अपनी पसंद का खाना मिला था इन पथरो में दोनों कुत्तो ने एक चूहा पकड़ लिया था ।भूख तो अब हमें भी लग रही थी ।तो  हमने भी अपना बैग खोला इसमे अक्षय भाई का लाया हुआ नमकीन और एक दो बिस्कट के पैकेट थे चार पांच मेरे पास चॉकलेट थे उसमे से ही थोड़ा थोड़ा खा लिया ।हिमाचल वालो से भी पूछा ले लो भाई पर उन्होंने मना कर दिया ।जो हमारे पास नमकीन था उसमें मिर्च थोड़ी ज्यादा थी और पानी हमारे पास कम था । खा पी कर हम फिर आगे चल पड़े काफी देर पथर आते रहे इन पथरो पर चलना थोड़ा मुश्किल होता हैं अगर थोड़ी सी भी लापरवाही की तो चोट लग सकती है या पैर में मोच भी आ सकती है।पर अब हमे थकावट नही हो रही थी इस लिए रुक कर आराम करने की जरूरत नही पड़ रही थी। अब हमें पीछे से कोई आता दिखाई दिया कोई पहाड़ी ही होगा तभी बड़ी तेजी से आ रहा था । अब दिल कर रहा था ये पथर जल्दी खत्म हो और थोड़ा तेज चले ।दूर रास्ते पर बर्फ भी नजर आ रही थी ।थोड़ी देर बाद वो जो पीछे से आ रहा था वो भी हमारे पास आ गया ये तो रोहित था जो हमे कल भीम द्वारी से थोड़ा पहले मिला था ।ये नैनसरोवर पर नहाने आया था ।इतनी ठंड में यहाँ नहाने की हिम्मत हर कोई नहीं कर सकता ।हमारे तो यहाँ ऐसे ही हाथ सुन हो रहे थे और ये यहाँ नहाने आया है ये सोच कर मुझे तो और भी ठंड चड़ गई।थोड़ी देर में नैन सरोवर भी आ गया और बर्फ़ भी। यहाँ से आगे काफी दूर तक बर्फ ही भर्फ़ नजर आ रही थी ।अब यहां पर थोड़ी देर रुक कर आराम करेगे और कुछ खायेगे ।यहाँ पहुंचते ही अक्षय तो फ़ोटो खीचने लगा और मैंने नमकीन निकाल लिया भूख बहुत लगी थी। हिमाचल वालो के पास ब्रैड और पीनट बटर था मैं भी उनके पास बैठा था मुझे उम्मीद थी वो एक बार जरूर पूछेगे आप भी ले लो ब्रैड और मैंने सोच रखा था एक बार पूछ लेने दो मना मैं भी नहीं करूंगा पर उन्होंने  पूछा ही नहीं हाँ उन्होंने अपने कुत्ते को भी  ब्रैड दिया अब मुझे उस कुत्ते से जलन हो रही थी।अब अक्षय और बब्बू भी फ़ोटो खिंच कर आ गए थे हमने भी अपना नमकीन और बिस्किट खाए और चल पड़े आगे ।अब पथर नही थे बर्फ़ थी बर्फ़ भी ताजी गिरी हुई थी कल गिरी होगी ।कोई निशान नही था किसी के भी पैरो का ।जब हम पैर रख रहे थे तो पैर थोड़े से बर्फ़ के अंदर जा रहे थे ।यहाँ पर हम ने रोहित को हमारे साथ आगे जाने के लिए भी मना लिया ।वो बोल रहा था मेरी दादी गुस्सा होंगी पर हम ने कहा हम समझा देंगे तुम्हारी दादी को तो रोहित मान गया। जहाँ पर बब्बू ने अक्षय से पूछा भाई सुस्त क्यू हो ,लग तो मुझे भी सुसत रहे थे पर मुझे लगा थकावट होगी इस लिए नही पूछा पर उसने बोला ऐसी कोई बात नहीं है। थोड़ी देर में बर्फ भी खत्म हो गई लेकिन चड़ाई जारी रही ।मेरे घुटने में थोड़ा दर्द होने लगा था जैसे जैसे ऊपर जा रहे थे दर्द भी बढ़ता जा रहा था ।बैग में दवाई देखी तो वो भीम द्वारी पर ही रह गयी थी दूसरे बैग में ।जब लगा अब ज्यादा तकलीफ है तो हिमाचल वालो से पेन किलर मांग ली उन्होंने एक गोली दे दी ।मैंने सोचा खाना भी मांग लेता तो शायद वो भी दे देते। पर अब सिर्फ गोली से काम चला लेते है गोली खा कर काफी आराम मिला ।अब फिर कुछ स्पीड बड़ाई गयी। हल्की हल्की भर्फ़ गिरने लगी थी।मैंने पहली बार भर्फ़ गिरते देखी थी अच्छा लग रहा था। रास्ता तो पहले ही मुश्किल था अब एक ग्लेशियर भी आ गया। मुश्किल ये थी बर्फ़ ताजी गिरी हुई थी जिस से पैर अंदर दसने का डर था और एक तरफ खाई भी थी। पर सब ने धीरे धीरे इसको पार कर ही लिया ।हिमाचल वालो में से एक लड़के को चड़ने में काफी दिक्कत हो रही थी रास्ता भी काफी मुश्किल था बर्फ  भी ज्यादा थी ।और अब बर्फबारी भी ज्यादा होने लगी  थी ।अब वो लड़का आगे जाने से मना करने लगा ।तो वो सभी वापिस जाने की सोचने लगे पर हमारे कहने पर एक कोशिश और करने के लिए मान गए ।रास्ता कभी बर्फ पर तो कभी पथरो का आ जाता था ।थोड़ी दूर ही गये थे कि हिमाचल वालो ने तो मना कर दिया आगे जाने के लिए मौसम भी अब काफी खराब हो गया था ।अब हम भी क्या कर सकते थे इसमे । उनको वही छोड़ कर हम आगे चले गए वो अभी वापिस नही गए थे एक पत्थर के नीचे थोड़ी जगह थी वही हमारे वापिस आने तक रुकेंगे फिर हम इक्कठे वापिस जाएगे।हम थोड़ा सा आगे गए तो एक जगह सीधी चड़ाई आ गईं ज्यादा नही थी कोई 30 मीटर के करीब होगी। जहाँ पर जोशी बोला मैं आगे नही जाऊंगा कारण इस चड़ाई पर बर्फ बहुत थी और दोनों तरफ खाई थी इस लिए वो डर गया था।ज्यादा हमने भी जोशी को नही कहा कि आगे चलो।अब हम 4 लोग बचे थे मैं,बब्बू ,अक्षय और वो लड़का रोहित। रोहित तो ऐसे चड़ गया जैसे समतल रस्ते पर जाते है फिर बारी आई बब्बू की जब भी वो ऊपर चड़ने लगता फिसल कर नीचे आ जाता कम से कम दस बार कोशिश की पर बब्बू चड़ न सका ।फिर रोहित को हमने बोला अपने मफलर से खींच ले पर वो बोला मैं छोटा हूँ आप को कैसे खींचूंगा कही मैं भी नीचे खाई में ना गिर जाऊ।वापिस हम जाना नही चाहते थे। फिर एक दो बार कोशिश करने पर बब्बू चड़ गया अब अक्षय बोला मैं भी आगे नही जा पाऊंगा पर मैंने उसे समजाया थोड़ी कोशिश करो हम चड़ जायेगे ।चार पांच बार फिसलने के बाद मैं भी चड़ गया अक्षय ने भी कोशिश की पर वो बार बार फिसल रहा था। अब उस ने साफ मना कर दिया भाई मैं नही जा सकता। मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि अक्षय यहाँ से वापिस चला जायेगा। अब हम तीन ही रह गए थे। रोहित आगे चला गया था और बब्बू मुझे आवाज लगा रहा था जल्दी करो मौसम खराब हो रहा है और मैं अक्षय को वही छोड़ कर आगे बढ़ गया ।रास्ता काफी मुश्किल था बड़े-बड़े पथरो को पकड़ कर चढ़े।थोड़ा आगे गए तो फिर वैसी ही बर्फ और चड़ाई आ गई पर इस बार इतनी मुश्किल नही हुई पर पैर बर्फ में दस रहे थे जिस से बर्फ़ जूतों के अन्दर जा रही थी ।मैंने एक जगह पर पीछे मुड़कर देखा तो चारो हिमाचली और अक्षय ,जोशी वापिस जा रहे थे और ।मैं सोच रहा था कितनी पास आकर ये लोग वापिस लौट गए ।हम थोड़ा सा चले और भीम शिला आ गया ।जहाँ पर बड़े बड़े पत्थरों पर भीम ने कुछ लिखा था मेरी समझ मे तो कुछ नही आया कोशिश तो बहुत की मैंने ।बब्बू ने फिर आवाज लगा दी जल्दी करो, यार एक तो बब्बू को जल्दी बहुत रहती है। मैं आगे चल पड़ा ।इस रास्ते पर काफी बर्फ थी तो मैं  वीडियो बनाने लगा  तभी मेरा पैर फिसल गया एक तरफ खाई थी वो तो शुक्र है बच गया ।बब्बू ने जब देखा तो वो गुस्सा हो गया और बोला वीडियो के चक्कर मे मर जायेगा सीधा होकर चल और मोबाइल जेब मे डाल लें ।अब शिला साफ नजर आ रही थी। रोहित हमसे पहले पहुंच गया था वो अभी पूजा कर रहा था ।शिला से थोड़ा पहले एक पथर पर हमने अपना सामान रखा और बैठ गए समय देखा 12:45 ।हमने सोचा 1:15 पर ही पूजा करेगे।काफी थक भी गये थे ।बहुत देर से पानी नही पिया था जो पानी था कब का खत्म हो गया था मैंने तो कई बार बर्फ खा कर ही काम चलाया था ।पानी तो यहाँ भी नहीं था पर एक पथर से पानी की बूंदे टपक रही थी खाली बोतल को उसके नीचे रख दिया जाते समय उठा लेंगे थोड़ा पानी तो मिलेगा। फिर अपने जूते उतारे बर्फ से ही हाथ धोए ओर चल पड़े भोले को गले से लगाने ।हमारी आंखों से आंसू आ रहे थे खुशी के आंसू ।हम हैरान थे इतने लोगो मे से भोले ने हमे ही दर्शन दिए अगर ताकत की बात करे तो अक्षय और जोशी दोनो मेरे से ज्यादा दम रखते थे चड़ने का। पूरे रास्ते वो मेरे से आगे आगे ही आये थे ।अगर मानसिक ताकत की बात करे तो मैं और बब्बू दोनो काफी मजबूत है ।पर पिछले साल अक्षय ने अकेले किन्नर कैलाश की यात्रा की थी पर इस बार पता नही क्या हो गया था ।बब्बू ने तो नैन सरोवर से ही बोल दिया था आज अक्षय के चेहरे पर पहले वाली चमक नही है।शिला के सामने हम कुछ देर ऐसे ही खड़े रहे ।पहले मौसम थोड़ा खराब था जबसे यहाँ पहुंचे थे कड़क धूप निकल आई थी ।नीचे बर्फ थी पर जब किसी पथर पर पैर रखते थे तो पथर थोड़े गर्म लग रहे थे धूप की वजह से।चारो तरफ दूर दूर तक पहाड़ साफ नजर आ रहे थे ।तभी रोहित बोला जल्दी करो वापिस भी जाना है तो हमने अपने बैग से पूजा का सामान निकाला हम तो घर  से कुछ लेकर नही आये थे पर जीजा जी ने दिया था उसी से पूजा की फ़ोन पर आरती और महामृत्युंजय मंत्र चलाये।जब हम पूजा कर रहे तो हमने देखा समने कीसी ने 4 कच्चे आम चढ़ाए हुए थे भोले बाबा को कोई आया होगा एक दो दिन पहले ।हम ने सोचा भोले बाबा की जगह उनके बच्चे ये खा ले तो ज्यादा अच्छा है इस लिए भोले का प्रशाद समाज कर हमने 3 आम उठा लिए।हम तीनो को एक एक आ गया और एक भोले बाबा के लिए छोड़ दिया।थोड़ी देर फ़ोटो खिंचे आस पास की पहाड़ियां देखी ।दिल तो वापिस जाने का कर ही नही रहा था। कार्तिकेय चोटी भी साफ दिख रही थी अक्षय का बहुत मन था वहाँ जाने का ।हमे अब एक घंटा हो गया था यहाँ आये हुए अब एक बार और भोले को नमस्कार किया   और भोले से फिर दुबारा बुलाने का वादा लेकर वापिस चल पड़े। अपना सामान उठाया जूते पहने जो बोतल रखी थी पथर के नीचे उसमे 150 ml पानी मुश्किल से भरा था ।अभी प्यास नही लगी थी तो बोतल को बैग में रखा और भोले का जयकारा लगा कर नीचे की और चल पड़े ।अब दिल मे जो खुशी थी वो शब्दो मे बया नही की जा सकती ।जितनी देर हम ऊपर रुके थे उतना समय धूप थी जब वापिस चले तो फिर से मौसम खराब होने लगा। चड़ते समय जिस जगह बर्फ पर कम दिक्कत हुई थी वहां पर हम बहुत बार फिसले। बब्बू तो एक दो बार फिसला मैं कम से कम पांच छे बार फिसला पैंट भी थोड़ी लूस हो गयी थी जा फिर मैं थोड़ा पतला हो गया था पहाड़ चड़ कर ।जब फिसल कर गिरता तो बर्फ पैंट में कमर के पास से अंदर घुस जाती जूतो में भी चली जाती थी।इस थोड़ी सी जगह से उतरने पर ही नानी याद आ गई ।मेरा तो पिछवाड़ा भी गिर गिर कर दर्द करने लगा था।मुझे पहाड़ चड़ने से ज्यादा  उतरने में दिक्कत हो रही थी ।रही सही कसर मौसम ने पूरी कर दी हल्की हल्की भर्फ़ भी पड़ने लगी। अभी तक तो रोहित हमारे साथ चल रहा था पर भीम शिला के पास आकर वो बोला मैं अब जल्दी नीचे उतरूंगा तो हमने भी उसे नही रोका ।बब्बू आराम से चल रहा था उसे कोई दिक्कत नही हो रही थीं ।थोड़ी देर बाद बर्फ भी ज्यादा गिरने लगी जैसे जैसे हम नीचे उतर रहे थे भर्फ़बारी भी तेज हो रही थी ।थोड़ी देर बाद तो धुन्ध भी छा गई रास्ता भी बड़ी मुश्किल से नजर आ रहा था ।मैंने बब्बू को बोला भाई पास ही रहना ज्यादा आगे मत निकल जाना।थोड़ी देर ऐसे ही चलते रहे । अरे ये क्या अब तो भर्फ़ की जगह ओले गिरने लगे ।जिस रास्ते पर हमें चड़ते समय पथर दिख रहे थे अब सिर्फ बर्फ़ ही बर्फ़ थी न कोई रास्ता नजर आ रहा था न कोई पथरो पर लगा पेंट का निशान ।मेरे दोनो घुटनो में भी बहुत दर्द हो रहा था ।सुबह से हमे 4 हिमाचली और रोहित के इलावा और कोई ऊपर आता जा नीचे जाता नही मिला पर दोनों कुत्ते अब भी हमारे साथ ही चल रहे थे ।मतलब आज इन दोनों कुत्तो के इलावा हम तीन लोगों ने ही दर्शन किये थे ।रास्ता अब और भी ज्यादा मुश्किल हो गया था बर्फ़ पर पैर फिसल रहा था कही कही तो बैठ कर ही उतरना पड़ा ।मुझे घुटनो के दर्द के कारण बैठने में भी बहुत मुश्किल हो रही थी ।एक जगह आ कर बब्बू बोला हम नैन सरोवर नही जायेगे दूसरी तरफ से शॉटकट मारेगे ।मैं बोला भाई कही से भी ले चल पर जल्दी ले जा अब चला नही जा रहा ।इस रास्ते पर बर्फ कही कही तो इतनी होती थी घुटनो तक पैर अंदर चला जाता बड़ी मुश्किल से उतर रहे थे ।ऊपर से बर्फ की जगह ओले पड़ रहे थे ।वो तो शुक्र था भोले का ओले छोटे थे नही तो और भी मुश्किल हो जाती। थोड़ी देर बाद फिर से पथर आ गए अब थोड़ा आराम मिला नही तो बर्फ़ पर चल चल कर हालात खराब हो गई थी ।जब तक पथर रहे स्पीड भी ठीक रही जब पथर हटे स्पीड फिर कम हो गयी। बब्बू मेरे आगे आगे तेजी से चला जा रहा था और मुझे उसकी वजह से तेज चलना पड़ रहा था ।मैं कब से भोले से दुआ कर रहा था ये ओले बन्द हो जाए अब भोले ने मेरी सुन ली पर अब ओले की जगह बारिश होने लगी हे भोले बारिश से तो ओले ही अच्छे थे ।आज से पहले मैंने बर्फ़ पड़ती नही देखी थी और आज इतनी देख ली फिर दुबारा कभी देखने की इच्छा भी नही रही। ये बर्फ़ सिर्फ शिमला जा मनाली में  ही गिरती हुई अच्छी लगती है। यहां इसने हमारी हालत खराब कर दी अब बारिश ने उस से भी ज्यादा बुरी हालत कर दी । ठंड भी बढ़ गयी थी मेरे हाथ सुन्न हो गए थे होंठ भी नीले हो गए थे।अब चलने का बिल्कुल भी मन नही कर रहा था। दिल कर रहा था यही सो जाऊ जो होगा देखी जाएगी। पर फिर सोचा अब इतनी ठंड है तो रात को क्या हाल होगा ।बब्बू अब ओर ज्यादा दूर निकल गया था मैं भी थोड़ा तेज चलने लगा। पार्वती बाग के पास आकर मैं दो तीन बार गिरा एक बार तो इतनी जो से गिरा पिछवाड़ा सुन्न हो गया ।अब बारिश की वजह से कीचड़ हो गया था ।पैंट भी गिरने की वजह से कीचड़ से भर गई थी ।जूतो में मिट्टी लग गई थी जिस से ग्रिप नही बन रहा था बार -बार फिसल रहा था। अगर हम यात्रा के समय आए होते तो पार्वती बाग में टेंट होते और हम यही सो जाते पर अब तो भीम द्वारी जाना ही पड़ेगा और कोई रास्ता भी नही था ।पार्वती बाग के बाद रास्ते मे फिसलन हो रही थी तो मैं सही रास्ते को छोड़ पास में घास पर चलने लगा। घुटनो में इतना दर्द था मै बिल्कुल धिरे धीरे से चल रहा था और बब्बू आज मिल्खा सिंह बन रहा था पास होता तो उसे बोलता भाई आगे निकलने से कोई गोल्ड मैडल नही मिलने वाला । वो अब काफी आगे निकल गया था ।मुझे दूर दिखाई दे रहा था पर मैं आराम आराम से ही चल रहा था करता भी क्या तेज चला ही नही जा रहा था। अब हल्का हल्का अंधेरा भी होने लगा था और भीम द्वारी अभी काफी दूर था ।अब मुझे बब्बू दूर एक पथर पर बैठा दिख रहा था वो मेरा इंतजार कर रहा होगा क्योंकि बैग उसके पास था और टोर्च उसमे थी ।करीब 1 घंटे बाद मैं बब्बू के पास पहुंचा अंधेरा हो गया था ।जब मैं बब्बू के पास पहुँचा तो देखा जोशी वही टेंट लगा कर सो रहा था। अजीब पागल इंसान है आज तो उसके पास समय था आगे जाने का फिर भी यही पड़ा है ।हम बिना रुके आगे चल पड़े अब बब्बू और मैं साथ साथ ही चल रहे थे। अब फिर एकदम  सीधी डलहान आ गई पास में ही पार्वती झरना था। इस थोड़ी सी उतराई में मेरे घुटनो की बैंड बज गई ।थोड़ी देर में हम ये डलहान उतर गए। अब फिर उस नाले को  पार किया ।अब रास्ता प्लेन ही था तो हम तेजी से चलने लगे और भीम द्वारी उसी दुकान में पहुंच गए जहाँ सुबह समान रखा था ।अक्षय का पता किया तो वो आगे चला गया था रोहित की दुकान पर गया होगा पक्का ।वो चारो हिमाचली यही रुके थे उनसे फिर एक बार पेन किल्लर ली धनयवाद किया और हम आगे चल पड़े थोड़ी देर में हम रोहित की दुकान पर पहुंच गए अक्षय यही पर था। और रोहित सो रहा था उसकी दादी ने बताया आज पहली बार बिना खाय सोया है थक गया होगा। हमने अपने कपड़े उतारे पूरे गीले हो गए थे ठंड बहुत लग रही थी और भूख भी ।बब्बू के पास तो बैग में और कपड़े भी थे उसने बदल लिए। मेरे पास सिर्फ शर्ट थी वो पहन ली नीचे सिर्फ़ कच्छा बदल लिया।चूल्हे के पास बैठ कर राजमा चावल खाएं बहुत टेस्टी बने थे थोड़े और लिए पेट भर गया पर मन नही भरा। एक एक कप चाय पी और चार पांच रजाई ले कर सो गए थकावट इतनी थी कि अपने स्लीपिंग बैग भी नही उठाए। रात को मुझे ठंड बहुत लग रही थी जब रात को करवट बदलता था तो रजाई ऊपर उठ जाती थी जिससे और ज्यादा ठण्ड लगती सारी रात में मुश्किल से 1 घंटा नींद आई होगी।बाकी बाते अगले भाग में
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 ये है भीम शिला इनपे भीम ने लिखा हुआ है


 यात्री ऐसे घर बना देते हैं

शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

श्रीखंड कैलाश यात्रा भाग-2 थाचडू से भीमद्वारी

पिछले भाग में आप ने पड़ा कैसे हम संगरूर से थाचडू पहुंचे अब आगे पढ़िए पर पहले कुछ फोटो देख ले वैसे ये सभी फ़ोटो अक्षय जी ने खिंची थी

काली घाटी के बाद ये उतराई आती है

थाचडू से थोड़ा पहले
रात को नींद ठीक ठाक आई, रात को हल्की बारिश भी हुई जिस से ठंड भी बढ़ गयी थी ।रात को कुत्ता टेंट के साथ घिसने लगा एक बार तो मैं डर गया पता नहीं कौन सा जानवर आ गया बाद में पता चला ये तो अपना साथी ही है।वैसे अगर और कोई जानवर होता तो ये बोक्ता जरूर। सुबह सब जल्दी उठ गए थे ।यहाँ तक फ़ोन का नेटवर्क बडिया आ रहा था घर पर रात को ही फ़ोन कर दिए थे सब ने ।उठने के बाद सबसे पहले समान पैक किया फिर ब्रश किया सभी ने । खाना कही आगे चल कर अगर कोई दुकान मिली तो वही खायेगे नही अपना बना लेंगे। ट्रेकिंग पर जाते समय अगर आप सब कुछ अपने साथ लेकर जाते हो मतलब खाना, टेंट और स्लीपिंग बैग तो आप को कोई टेन्सन नही होती आगे खाने और रहने की पर एक नुकसान भी होता है आप अगर पोटर नही करते हो तो आप को बजन भी ज्यादा उठा कर चलना पड़ता है।मैं कल अपना और जीजा जी का मिला कर कोई 25 किलो वजन उठा कर लाया था ।अब हम  आगे की और चल पड़े ।रात को जो पानी कुत्ते का जूठा होने के कारण नही पिया था अब उसी बाल्टी से पानी पी लिया और बोतल में भी भर लिया।हमे कोई अंदाज नही था कि आगे पानी कहाँ मिलेगा कल मैं तो पानी की वजह से बहुत परेशान हुआ था कल सारा रास्ता जंगल का था इस लिए धूप नही लगी वरना प्यास और भी तंग करती।  मुझे बाद में बब्बू और अक्षय ने बताया अभी थाचडू नही आया है  और चलना पड़ेगा फिर पहुचेंगे थाचडू। रात को जब टेंट में पहुंचे थे तो सोचा था थाचडू पहुच गए अब चड़ाई कम होगी पर जब पता चला अभी और चलना है थाचडू के लिए तो , तो क्या अब चलना पड़ेगा क्योंकि और कर भी क्या सकते थे। सुबह सुबह थोड़ी ठण्ड थी और रात को आराम भी किया था तो अभी ज्यादा दिक्कत नही हो रही थी चलने में ।अक्षय बब्बू और जोशी का स्टैमिना बहुत अच्छा है वो आगे निकल गए आज कौन सी नई बात है वो तो कल भी आगे ही चल रहे थे। मैं और जीजा जी पीछे पीछे चल रहे थे ।अभी भी रास्ता जंगल का ही था लेकिन आज रास्ता थोड़ा खूबसूरत था आज पेड़ तो थे पर झाड़िया कम थी।दिल लग रहा था चड़ाई करने में बीच बीच मे आगे वालो को आवाज़ लगा देता था बब्बू भी आवाज लगा देता था कभी कभी। वो भी ज्यादा दूर नही थे पेड़ ज्यादा होने के कारण वो कभी कभी दिखाई देते  थे ।कल के मुकाबले आज ज्यादा मजा आ रहा था चलने में कुछ शरीर भी आदी जो गया था चलने का । जीजा जी आज भी पीछे रह जाते थे पर आज वो अपना सामान खुद उठा कर चल रहे थे जिस का सब से ज्यादा फायदा मुझे हुआ कल ज्यादा वजन उठाने से मेरे कन्धे छिल गए थे ।जब थाचडू आने वाला था तो वहाँ से श्रीखंड शिला के दर्शन होते है सब को हुए मुझे छोड़ कर मुझे पता भी नही था कि यहां से दर्शन होते है बाकी तीनो आगे थे इस लिए किसी ने उनको बता दिया होगा । चलो आज नही हुए पर कोई बात नहीं पास से ही दर्शन करूँगा
  थोड़ा और चलने पर थाचडू भी आ गया वो तीनो तो पहले ही पहुँच गए थे ।मैं और जीजा जी 10 मिनेट बाद में पहुंच गए ।वो तीनो चाय पी रहे थे एक दुकान पर ।अभी दुकान वाले के पास दूध नही पहुचा था इस लिए काली चाय ही बनी थी ।2 कप हमारे भी बन गए चाय बहुत बढ़िया बनी थी मैंने पहली बार पी काली चाय । खाना भी था यहाँ पर ।खाने में परांठे और मैगी थे ।तो परांठो का ऑडर दे दिया दुकान वाले ने बताया आगे भी टेंट और खाना मिल जाएगा ।हम ने सोचा फिर इतना वजन क्यू उठाना तो सभी ने थोड़ा थोड़ा समान यही पर एक बैग में डाल कर रख दिया ।हमारे पास 3 टेंट थे।एक मेरा और बब्बू का एक जोशी का था और एक अक्षय  और जीजा जी का था ।सोचा एक टेंट को यही छोड़ देते है। एक मे हम तीन और एक मे दो लोग सो जायेगे।  वजन कुछ कम हो गया था अब।इतने में परांठे भी बन गए थे। जिस को जितनी भूख थी उतने खाये और एक एक कप चाय और पी ।अब काफी समय हो गया था यहाँ रुके हुए तो हम आगे  की और चल पड़े ।हम सोच रहे थे रात को पार्बती बाग रुकेंगे पर जीजा जी की वजह से थोड़ा मुश्किल लग रहा था वैसे भी दुकान वाले ने बोला था पार्वती बाग नही पहुंच पाओगे आप। वैसे  हम ने सुना था थाचडू के बाद चड़ाई थोड़ी कम हो जाती है पर चड़ाई थाचडू के बाद भी थी ।पर अब पेड़ नही थे तो दूर दूर तक दिखाई दे रहा था ।जब दूर दूर तक दिखाई देने लगता है तो ट्रेकिंग करने में मजा आने लगता है। मौसम बिल्कुल साफ था रास्ते मे कुछ यात्री वापिस आते हुए भी मिल रहे थे सभी से मैं  2 सवाल पूछ रहा था
1 दर्शन हुए और दूसरा काली घाटी कितनी दूर है और दोनों सवालो के जवाब ज्यादातर खतरनाक होते थे दर्शन दूर से हुए मुश्किल से एक दो ने कहा होगा जी हां हम शिला के पास गए बाकी सब रस्ते में से ही वापिस आ रहे थे और दूसरे सवाल के जवाब होता था काली घाटी अभी दूर है। रास्ते में एक जगह ऐसी भी आई जहाँ देखने पर लगा रास्ता कहाँ पर है ।यही पर एक पथर पर हम बैठ गए थोड़ी देर में जीजा जी भी आ गए। जब पास गए तो रास्ता दिख तो गया पर था एकदम खड़ी चड़ाई वाला पर ज्यादा लम्बा नही था । इसके बाद रास्ता ज्यादा मुश्किल नही था ।आज सुबह से ही मुझे कोई ज्यादा दिक्कत नही आई बल्कि जीजा जी को छोड़ कर किसी को भी कोई दिक्कत नही आई जीजा जी काफी पीछे रह जाते थे । इस बार मैं भी उनके लिए ज्यादा नही रुका ।रास्ता भी ठीक था कल के मुकाबले इस लिए सोचा जीजा जी आ ही जायेंगे ।अभी पहाड़ो पर घास ज्यादा हरी नही थी पर अच्छी लग रही थी दूर पहाड़ो पर पड़ी बर्फ भी दिखने लगी थी ।रास्ते मे अब चड़ाई तो थी पर  ज्यादा मुश्किल नही थी। थोड़ी देर चलने के बाद  काली घाटी भी आ गई। वो तीनो पहले ही पहुच गए थे यहाँ मोबाईल का नेटवर्क भी था ।  जोशी घर पर वीडियो कॉल कर रहा था और बब्बू फेसबुक पर लाइव था अक्षय भाई फ़ोटो ले रहे थे मैंने सब से पहले अपना सामान रखा और फिर बब्बू के पास गया सोचा  फेसबुक लाइव पर अपनी शक्ल भी दिखा दूँ। यहाँ पर माँ काली का एक छोटा सा मन्दिर बना हुआ है  वहाँ पर माथा टेका और आगे की यात्रा के लिए दुआ मांगी।जब यहाँ पर पहुंचे तो मौसम भी थोड़ा बदल गया था धुन्ध पड़ने लगी थी ऐसा लग रहा था हम बदलो के ऊपर बैठे है। यहाँ पर भी दुकाने अभी लग रही थी ।खाना तो अभी नही बन रहा था पर चाय मिल रही थी तो दुकान वाले से चाय बनवाई तब तक जीजा जी भी आ गए । उनको घुटने में अब ज्यादा तकलीफ हो रही थी उनको आगे का रास्ता दिखाया जो काली घाटी से भीम तलाई तक एकदम नीचे उतरता है।तो वो बोले मैं आगे नही जा पाऊंगा। वैसे काली घाटी से भी शिला के दर्शन होते  है पर आज बादल थे इस लिए दर्शन नही हुए । जीजा जी को बोला आप यही रुको कल सुबह दर्शन करके वापिस चले जाना तो वो थोड़े भाबुक हो गए ।थोड़ी देर रुक कर जीजा जी को वही छोड़ कर हम चारो आगे चल पड़े ।काली घाटी के बाद एकदम नीचे उतरना पड़ा। एकदम सीधी डलहान उतरते हुए हम सोच रहे थे इस पर चड़ेगे कैसे । पूरे रास्ते मे पथर थे इस लिए थोड़ी मुश्किल हो रही थी ।ये डलहान ज्यादा देर नही रहती ऐसी उतराई दो तीन बार आती है ।थोड़ी देर बाद रास्ता ठीक हो गया इस बार जोशी सब से आगे चल रहा था हम तीनों काफी पीछे रह गए थे कारण हम रास्ते मे फ़ोटो लेते हुए जा रहे थे।अगर ऐसी जगह पर फ़ोटो नही खींचेगे तो वहाँ जाने का फायदा ही क्या ।फ़ोटो खीचने का जिम्मा अक्षय भाई का था और हमारा खिंचवाने का ।
काली घाटी के बाद पानी की कोई दिक्कत नही आती छोटे बड़े झरने आते रहते हैं ।एक बड़े झरने के पास हम आराम करने के लिए रुक गए जोशी भी यही बैठा था । हमारे पहुचते ही वो आगे चल पड़ा। हम ने रुक कर सब से पहले कुछ फोटो खींचे फिर थोड़ा रसना और जलजीरा बना कर पिया और बोलत में पानी भर कर आगे बड़ गए। मौसम सुबह से ही बडिया था ।भीम तलाई पर हम रुके नही अभी थोड़ी देर पहले तो आराम किया था तो सोचा अब कुंशा जा कर ही आराम करेगे । हम तीनों आराम से कुदरत के नजारो को देखते हुए चल रहे थे और सोच रहे थे हम कितने खुशनसीब है जो इन पहाड़ो,झरनों, फूलों और पेड़ ,पौधों को इतने करीब से देख रहे हैं अगर कुदरत के इन नजारो को करीब से देखना है तो कुछ कठनाईयों का सामना तो करना ही पड़ेगा । जोशी जी को ज्यादा ही जोश आ गया लगता था वो काफी आगे निकल गए थे। झरने पर जब वो मिले थे तो उनको बोला था भीम द्वारी पर जो सबसे पहली दुकान आएगी वहाँ रुक जाना इस लिए हम तीनों आराम से मजे लेते हुए चल रहे थे ।हमे पता था जोशी खाना बनवा लेगा अगर हम लेट भी हो गए । कुंशा पहुच कर दिल खुश हो गया नजारे ही कुछ ऐसे थे चारो तरफ घास थी वो भी हरी भरी कई तरह के छोटे छोटे  फुल भी खिले हुए थे । यहाँ पर भी थोड़ा फोटो शूट हुआ ।अक्षय का  तो जहाँ से जाने के लिए मन ही नही कर रहा था।पर जाना तो था ही।यहाँ भी कुछ दुकाने लग रही थी अभी कुछ दिनों बाद जहाँ पर भी खाना और रहने की जगह मिलने लगेगी । कुंशा के बाद हम ज्यादा नही रुके बस एक जगह रुक कर घर पर फ़ोन किए सारे रास्ते मे अभी तक bsnl और jio का नेटवर्क मिल रहा था airtel का बहुत कम मिला। यहाँ से जब हम आगे चल रहे थे तो एक पहाड़ी बच्चा मिला उसका नाम  रोहित था । उसने बताया  उसके चाचा और दादी ने भीम द्वारी में दुकान लगा रखी है। वो यहाँ ग्राहक ढूंढने के लिए बैठा था। यही से वो यात्रियों को अपनी दुकान पर रहने के लिए ले जाता है। वो भी हमारे साथ चलने लगा।हम उस से आगे के रास्ते की जानकारी लेने लगे उसने बताया वो भी कल नैनसरोवर तक नहाने जाएगा।
 हम उसके साथ बाते करते हुए चलते रहे ।अब हमें भीम द्वारी तो दिखने लगा था पर जोशी कहीं नही दिख रहा था। थोड़ा अंधेरा भी होने लगा था ।थोड़ी देर बाद हम रोहित के चाचा की दुकान पर पहुच गए वहाँ पर पता किया जोशी के बारे मे तो उन्होंने बताया वो आगे चला गया है। हमने जोर जोर से आवाज़े भी लगाई पर जोशी नही मिला । करीब आधा किलोमीटर दूर हमे कुछ औऱ टेंट दिखे हमे लगा जोशी वहाँ पर होगा हम भी उसी तरफ चल पड़े । वहाँ पहुच कर एक दुकान वाले से पता किया उसने बताया आप का साथी तो पार्वती बाग चला गया है हमे बहुत गुस्सा आया जब उसे बोला था भीम द्वारी रुकना तो वो आगे कैसे जा सकता है ग्रुप में अगर कोई बात हो गई तो उसे सभी को मानना चाहिए ।पर अब अंधेरा काफी हो गया था और थकावट भी हो रही थी तो हमने यही रुकने का मन बना लिया ।एक अच्छी सी जगह देख कर हमने अपना टेण्ट लगा लिया और सामान रख कर दुकान में कुछ खाने के लिए चल पड़े ।दुकान वाले को मैगी बनाने का बोल कर हम उसकी दुकान में रखी रजाई में घुस गए ।ठण्ड काफी हो गई थी ।पहले मैगी खाई फिर चाय पी।थोड़ी देर दुकान वाले से बाते करते रहे थोड़ी जानकारी आगे के रास्ते की भी ली। बैठे बैठे अक्षय भाई ने टेंट वाले से एक रजाई मांग ली टेंट वाले ने बोल दिया ले लो पर किराया 100 रु बताया पर 50 रु में मान गया।दुकान वाले से  पूछा सुबह चाय मिल जाएगी 4 बजे । बोला दे दूंगा मगर आप उठा देना सुबह ।उसके बाद हम अपने टेंट में आ गए रजाई को हमने नीचे बिछाया ता के नींद अच्छी आ जाए और नीचे से ठंड भी कम लगे। और हमने सुबह साथ एक बैग ही लेकर जाने की सोची थोड़ा सा खाना और टोर्च वगैरा एक बैग में रखे बाकी को यही छोड़ देंगे ।सुबह जल्दी जाना था आगे इस लिए सुबह 3 बजे का अलार्म लगा कर हम  स्लीपिंग बैग में घुस कर सो गए ।

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काली घाटी में माँ काली का मंदिर
एक सेल्फी भी हो जाए
हम भी सैल्फी लेंगे

गुरुवार, 19 जुलाई 2018

श्रीखंड कैलाश यात्रा ।भाग-1 संगरूर से थाचडू तक

नमस्कार दोस्तो मैं रुपिंदर शर्मा संगरूर पंजाब से हूँ ।मुझे पहाड़ बचपन से ही बहुत अच्छे लगते हैं और जैसे जैसे उम्र बढ़ती गई पहाड़ो से प्यार भी बढ़ता गया । वैसे तो मैं पहाड़ो पर काफी घुमा हूँ पर आज मैं अपनी श्रीखंड कैलाश यात्रा के कुछ अनुभव आप के साथ सांझा करूँगा । श्रीखंड महादेव की यात्रा काफी कठिन मानी जाती है तो इसकी तैयारी भी बहुत करनी पड़ती है मतलब सैर वगैरा । तो मैंने भी सुबह 4:30 का अलार्म सेट कर दिया और घर पर बोल दिया कल से मैं रोज सुबह सैर करने जाऊंगा। अलार्म अपने तय समय पर रोज बजता । मैं पहले 4 दिन तो  सैर पर गया क्योकि नया नया जोश था पर उसके बाद ना तो मैंने अलार्म बन्द किया न सैर की । लेकिन कोशिश हर रोज करता के कल पक्का जाऊंगा पर गया  कभी नही ।हाँ इस चक्कर मे पत्नी और माता जी से रोज लेक्चर सुनता ।पत्नी जी ने तो बोल दिया जा तो सैर पर जाओ नही अलार्म तो बन्द करदो इसकी वजह से मुझे रोज जल्दी उठना पड़ता है ।पता नही क्या चक्कर था मुझे कभी अलार्म सुनता ही नही था अगर सुनता ही नही है तो उठू भी कैसे।
वैसे यात्रा की ये तयारी पूरा साल चलती रही इस यात्रा पर मेरे साथ जाने वाले मेरे 4 साथी थे। उनमें से बब्बू और अक्षय दोनो तो शुरू से तैयार थे बाकी दो एक मेरे जीजा जी और एक चंडीगढ़ से शंकर जोशी यात्रा से कुछ दिन पहले तैयार हुए थे ।यात्रा जितनी कठिन है उससे कहीं ज्यादा कठिन इसे हमने बना दिया था । हमने सोचा जब यात्रा आधिकारिक तौर पर शुरू होगी तो भीड़ बहुत होगी और सावन में बारिश का भी बहुत चक्कर पड़ता है तो हम ने फैसला किया यात्रा को पहले किया जाए और जो भी जरूरत का सामान हो उसको खुद लेकर जायेगे खुद लेकर जाने का मतलब कोई पोटर भी नही करना ।
तो जाने से पहले सामान और ट्रैक की जानकारी इकठ्ठी करनी शुरू की सामान में स्लीपिंग बैग और टेंट खरीदे गये और खाने में बिस्किट नमकीन और घर पर बनी मट्ठी और गुलगुले पैक किए गए । कुछ मैग्गी भी रख ली और उसे बनाने के लिए एक बर्तन रख लिया । मैगी आग के बिना तो बनेगी नही इस लिए फ्यूल जैली ले ली । और ट्रैक की जानकारी के लिए जाट देवता जी के श्रीखंड यात्रा के ब्लॉग को 10,15 बार पड़ लिया गया।यात्रा से कुछ दिन पहले अक्षय जाट देवता जी से मिला था उन्होंने अक्षय भाई को बोला भी था जब यात्रा में लंगर लगेंगे तब जाओ आसानी होगी पर हम तो बस एक बात पर अड़े थे भीड़ में नही जाना है ।  यात्रा का दिन भी नजदीक आ गया तो पैकिंग शुरू कर दी जब सब साथियो से पूछा आप के बैग का बजन कितना है तो जीजा जी के बैग का बजन 11 किलो सब से ज्यादा था और मेरा 6 किलो सब से कम था ।मेरे में कम इस लिए था मैंने सिर्फ रेन कोट और एक पेन्ट शर्ट रखे थे एक जैकेट और एक इनर ज्यादा सामान चड़ाई में तंग करता है । इस के इलावा स्लीपिंग बैग थे  ये सभी के पिट्ठू बैग से अलग थे । टेंट को हम मिल बांट कर उठाने वाले थे।और थोड़ा बहुत खाने के सामान था ।
इन सब के बीच जाने का दिन 16 जून भी आ गया  । सब साथियो ने चंडीगढ़ बस स्टैंड में इकठा होना था । शाम 7 बजे की बस थी चंडीगड़ से रामपुर की। मैं बब्बू और जीजा जी संगरूर से दोपहर 3 बजे चल पड़े। अक्षय ने लालड़ू हरयाणा से आना था जो चंडीगड़ के पास में ही है। हम तीनों 6:15 पर चंडीगड़ बस स्टैंड पहुंच गए थोड़ी देर बाद अक्षय भी आ गया। तभी बहुत तेज बारिश शुरू हो गई पहले काफी गर्मी थी अब बारिश की वजह से ठंड हो गई थी। शंकर जोशी को फ़ोन किया तो वो एक दोस्त के साथ गाड़ी में आ रहा था ।  हमारी सब की बस टिकट पहले से ही बुक थी तो अक्षय और बब्बू ये पता करने चले गए के बस कौन से काउंटर पर आ रही है। उन्होंने हमें आ कर बताया बस 29 नंबर पर आएगी पर जब 7 बजने में 5 मिन्ट रह गए और बस काउंटर पर नही आई तो हमने दुबारा पता किया तो पता चला बस तो 26 नम्बर पर लगी हैं। हमारे बस में बैठते ही बस चल पड़ी अगर 2 मिनट और लेट हो जाते तो बस निकल जाती बस तो चलो 8 बजे वाली भी आ जाती पर टिकट के पैसे नहीं आने थे । बारिश की वजह से मौसम में ठंडक आ गई थी तो बस में कोई ज्यादा परेशानी नही हुई
रास्ते मे बस खाने के लिए ढाबे पर रुकती है । हमारा खाना तो अक्षय भाई घर से पैक करवा कर लाये थे अरबी की सब्जी और परांठे सभी ने बस में बैठ कर ही खा लिए ।सब्जी बहुत टेस्टी बनी थी फिर कभी दुबारा मौका देंगे अक्षय जी को खाना खिलाने का ।जब सभी सवारियां खाना खा कर बस में आ गई तो बस दुबारा चल पड़ी । सभी को नींद तो आ रही थी पर लगातार लग रहे झटके तंग कर रहे थे । मुझे और  बब्बू को तो वैसे भी बस में नींद नही आती । जब बस शिमला से आगे गयी  तो एकदम से ठंड बहुत बढ़ गयी इतनी ठण्ड तो हमे श्रीखंड शिला के पास नही लगी जितनी बस में लग रही थी तो जल्दी जल्दी बैग में से जैकेट निकाली गई तो कुछ गर्माहट मिली। शिमला में बस आधी खाली भी हो गई थी तो हम सभी खाली सीटो पर लेट गए ।थोड़ी देर बाद जीजा जी को बाथरूम आया तो मैंने उनको एक खाली बोतल दी और कहा बस की लास्ट सीट पर जाकर काम निपटा लो और उन्होनो ने बात मान ली।  कोशिश तो बहुत की सोने की पर नींद आ ही नही रही थी तो  मैं और बब्बू बाते करने लगें ।कुछ देर बाद कंडक्टर ने आवाज लगा दी रामपुर वाले तैयार हो जाओ बस स्टैंड आने वाला है । तो हम सभी अपना सामान इकठा करने लगे बस स्टैंड पर उतर कर हम ने सब से पहले जाओ को जाने वाली बस का पता किया वो 8 बजे के बाद आने वाली थी। अभी समय बहुत था हमारे पास तो हम सामान को एक तरफ रख कर आराम करने लगे ।इतने में सफाई करने वाले आ गए और हमे समान उठाने को बोलने लगे तो हमने अपना सामान उठा कर साइड में किया । अब सोचा सो कर क्या करेंगे ।और बारी बारी से फ्रेश  होने के लिए शौचालय में चले गए ।अभी भी बस के आने में बहुत समय था तो हमने सोचा टैक्सी कर लेते हैं। एक दो टैक्सी वालो से पता किया एक टैक्सी वाले ने 1500 रुपये मांगे बस के किराये से तो बहुत ज्यादा थे पर अगर समय को देखे तो बस के मुकाबले  बहुत जल्दी जाओं  पहुंच जाते । सलाह मशविरा करने पर सब टैक्सी से जाने को मान गए  अगर बस से जाते तो 1 बजे से पहले यात्रा शुरू नही कर सकते थे टैक्सी से हम 8 बजे के करीब  ही जाओं पहुंच गए। वैसे रामपुर से जाओं तक सुरु में थोड़ा खराब है फिर बडिया सड़क आ जाती है ।रामपुर से जब सतलुज को पार करके दूसरी तरफ जाते है तो हम कुल्लू जिला  में पहुंच जाते है।रास्ते मे  सेब के पेड़ बहुत दिखते है अभी सेब छोटे थे डेड महीने के बाद पक्केगे ये ।जाओं पहुंच कर हम यात्रा शुरू करने से पहले  कुछ खाना चाहते थे। इस लिए  एक चाय की दुकान पर रुक गए खाने के बारे में पता किया तो वो बोला में बना दूंगा परांठे ।उसको 5 चाय और 10 आलू के परांठो का ऑडर दिया चाय तो उस ने दुकान पर ही बना दी पर परांठे के लिए अपने घर पर फ़ोन कर दिया ।हमने जब चाय पीने के कई सौ सालों के बाद परांठो के बारे में पूछा तो बोला अभी थोड़ा और समय लगेगा ।इतने समय मे तो दुबारा अपने घर जाकर खा आते खाना।हमे बहुत गुस्सा आ रहा था पर अब क्या कर सकते थे तो मैंने बब्बू और अक्षय को बोला आप परांठे ले कर आ जाना अब बराटी नाले पर जा कर ही खायेगे। तब तक मैं, जीजा जी और शंकर जोशी चलते हैं तो हम तीनों चल पड़े भोले बाबा के दर्शन करने के लिए सब से पहले एक पुल पार करना पड़ता है। शुरुआत में चढ़ाई ज्यादा नही है आराम से चलते रहे अक्षय और बब्बू पीछे थे इस लिए भी जल्दी नही की ।मैं सबसे आगे चल रहा था थोड़ी देर बाद याद आया पानी तो लिया ही नही इस लिए काफी देर प्यासा ही रहना पड़ा पर रास्ते मे एक जगह पानी का एक छोटा जा नाला मिला वहाँ पानी पिया ।थोड़ी देर बाद सिंघहार्ड नामक  जगह आई जहा यात्रा के समय रजिस्ट्रेशन होती है पर अब ये जगह बिल्कुल सुनसान थी यहाँ पर कमरे बने हुए हैं।और एक बड़ा सा शेड बना है यहाँ पर कुछ लोग लंगर लगाने के लिए तयारी कर रहे थे।यहाँ शंकर जी की मूर्ति भी बनी है उनको नमस्कार किया और फिर आगे चल दिया ।जीजा जी और जोशी जी पीछे आ रहे थे ।थोड़ी देर बाद वो जगह आई जहाँ आगे जाने के लिए लेंटर डाल कर रास्ता बनाया हुआ है इसको भी पार कर लिया ।अब  हल्की बूंदाबांदी  होनी शुरू हो गई तभी बाकी चारो भी आ गए ।हल्की बारिश हो रही थी तो  रेनकोट पहन लिए ओर फिर आगे की ओर चल पड़े।
 थोड़ा चलने पर हमें लोहे की सीढ़ियां दिखाई दी नीचे की ओर उतरती हुई । हम सीढ़िया उतरने लगे और उतरते ही बराटी नाले पर बना बाबा जी का आश्रम आ गया हमारे आश्रम पहुचते ही बारिश तेज हो गई । हमने अपने सामान को साइड में रखा और बाबा जी से खाने के बारे में पता करने लगे लंगर अभी तयार नही था पर चाय मिल गयी और हमारे पास आलू के परांठे तो थे ही। सभी ने 2 -2 परांठे ले लिए पर जब खाने लगे तो लाख कोशिश करने पर भी परांठो में से आलू नही मिले हाँ पर जीजा जी को एक मिर्च का टुकड़ा जरूर मिल गया ।पर जैसे भी थे परांठे खा कर भूख को शांत किया अभी तक सुबह से कुछ भी नही खाया था सिर्फ एक एक कप चाय पी थी।अब बारिश भी रुक गई थी तो चल दिये आगे की और बराटी नाले के बाद चढ़ाई भी शुरू हो जाती है वैसे मुझे चड़ाई में कोई खास दिकत नही होती है पर उतरते समय बहुत मुश्किल होती है । अक्षय बब्बू और जोशी आगे चल रहे थे मैं ओर जीजा जी पीछे हमारे सभी के पास करीब करीब12 किलो वजन सभी के पास था चड़ाई ज्यादा और पानी सिर्फ 3 लीटर के करीब जैसे जैसे चड़ाई चढ़ते गए जीजा जी पीछे रहते गए जब वो काफी पीछे रह जाते थे तो हम चारो एक जगह रुक कर जोर जोर से जीजा जी को आवाज लगाते इससे हमें पता चलता रहता के वो पीछे आ रहे हैं। कई बार जब हम आवाज लगते तो वो कोई जवाब नही देते थे तो जब वो पास आए तो हम नहे कहा जवाब तो दे दिया करो ता के हमे पता चलता रहे आप आ रहे हो तो वो बोले इतनी चड़ाई पर सांस बड़ी मुश्किल से ले रहा हूँ आवाज कहा से मरूँगा तुम लोग चलते रहो मैं आ जाऊंगा। इस चड़ाई पर हमने देखा पानी की लोहे की पाईप तो बिछाई हुई है पर उसमे पानी नही था अगर पाईप है तो रास्ते मे टोंटी लगा कर पानी की सप्लाई भी होनी चाहिये थी ता के यात्रियों को पानी की कमी ना हो । अब जीजा जी काफी पीछे रहने लगे थे उनके एक घुटने में तो पहले से ही प्रॉब्लम थी इस चड़ाई ने और दिक्कत शुरू कर दी अब अक्षय ,बब्बू और जोशी को आगे जाने को बोल कर मैं रुक गया और जीजा जी का इंतजार करने लगा 20 मिनट के बाद वो आ गए अब मुझे लगा ये वजन उठा कर ज्यादा नही चल सकते तो इनका बैग भी मैंने उठा लिया । अब मेरे पास 25 किलो से ज्यादा वजन था । अब इतना वजन था तो मेरी स्पीड भी कम हो गयी थी। हम दोनों आराम से चल रहे थे बीच बीच मे अक्षय और बब्बू को आवाज़ लगा कर बता देता था कि हम आ रहे हैं । रास्ते मे एक जगह जोशी बैठा था उसको मैंने थाचडू में टेंट लगाने का बोल कर आगे भेज दिया थोड़ी देर बाद जीजा जी भी आ गए । यहाँ पर बैठ कर थोड़ा आराम किया भूख लग रही थी तो बिस्किट खाये। जो लोग इस यात्रा पर गए है उनको ही पता है ये चड़ाई इंसान का क्या हाल करती है घोड़े और खच्चर बच गए जो इस यात्रा में नही होते नही तो वो भाग जाते ऐसी चड़ाई देख कर । अब फिर से चलना शुरू किया वजन ज्यादा होने से थोड़ा रुक रुक कर चल रहे थे । रास्ते मे आते जाते भी सिर्फ कभी कभी लोकल लोग मिल रहे थे वो भी अभी दुकानों के लिए समान ले कर जा रहे थे । अब तो हल्का हल्का अंधेरा भी होने लगा था अब आवाज़ लगाने पर बब्बू और अक्षय का भी कोई जवाब नही आता था । वो काफी आगे निकल गए थे ।अब 4 घंटे से ज्यादा हो गया था जीजा जी का सामान उठाए हुए अब उनको उनका सामान वापिस किया तो थोड़ा हल्का महसूस हुआ। आधा घंटा और चलने पर हमे कुछ टेंट लगे नजर आए आवाज़ देने पर बब्बू टेंट से बाहर आ गया जब वो नजर आया चलने की गति और कम हो गई पता था अब तो पहुंच ही गये है। 5 मिनट का रास्ता 15 मिनट में बड़ी मुश्किल से तय किया।किसी दुकान वाले ने एक बड़ा सा टेन्ट लगा कर खाली छोड़ रखा था इसी के अंदर हमारे तीन टेंट लगा रखे थे इन्होंने। जाते ही समान फैंका और टेंट में घुस गए सब से पहले गिले कपड़े बदले। बारिश से नही पसीने से गीले हुए थे। गीले कपड़े बाहर रख दिये बड़ा टेंट तो था बाहर इस लिए बारिश का डर नही था और रात भर में हवा से सुख भी जाएंगे । अब बारी आई खाने की तो जो घर से गुलगुले और मठियाँ लाये थे उन्ही से काम चलाया गया मैगी कल बना लेंगे आज हिम्मत नही है।जो पानी नीचे से लाए थे वो तो खत्म हो गया था सारा पानी जीजा जी पी गए थे ।बब्बू ने बताया यहाँ पानी की बाल्टी पड़ी है पर उसको कुत्ते ने जूठा कर दिया है दरसल एक कुत्ता जाओं से ही हमारे साथ आ रहा था। थोड़ा खाना इसे भी दिया गया ।रात को बिना पानी पिएं ही सो गए।
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     बराटी नाले के पास खिची गयी थी
        थाचडू की चड़ाई पर कही
     सिंघहार्ड में शंकर जी की मूर्ति
        थाचडू की चड़ाई पर कही

        थोड़ा आराम भी जरूरी है



नीचे अक्षय सेल्फी लेते हुए बब्बू सफ़ेद टीशर्ट में टोपीवाले शंकर जोशी नीली टीशर्ट में मैं और पीली टीशर्ट में जीजा जी