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शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

श्रीखंड कैलाश यात्रा भाग-2 थाचडू से भीमद्वारी

पिछले भाग में आप ने पड़ा कैसे हम संगरूर से थाचडू पहुंचे अब आगे पढ़िए पर पहले कुछ फोटो देख ले वैसे ये सभी फ़ोटो अक्षय जी ने खिंची थी

काली घाटी के बाद ये उतराई आती है

थाचडू से थोड़ा पहले
रात को नींद ठीक ठाक आई, रात को हल्की बारिश भी हुई जिस से ठंड भी बढ़ गयी थी ।रात को कुत्ता टेंट के साथ घिसने लगा एक बार तो मैं डर गया पता नहीं कौन सा जानवर आ गया बाद में पता चला ये तो अपना साथी ही है।वैसे अगर और कोई जानवर होता तो ये बोक्ता जरूर। सुबह सब जल्दी उठ गए थे ।यहाँ तक फ़ोन का नेटवर्क बडिया आ रहा था घर पर रात को ही फ़ोन कर दिए थे सब ने ।उठने के बाद सबसे पहले समान पैक किया फिर ब्रश किया सभी ने । खाना कही आगे चल कर अगर कोई दुकान मिली तो वही खायेगे नही अपना बना लेंगे। ट्रेकिंग पर जाते समय अगर आप सब कुछ अपने साथ लेकर जाते हो मतलब खाना, टेंट और स्लीपिंग बैग तो आप को कोई टेन्सन नही होती आगे खाने और रहने की पर एक नुकसान भी होता है आप अगर पोटर नही करते हो तो आप को बजन भी ज्यादा उठा कर चलना पड़ता है।मैं कल अपना और जीजा जी का मिला कर कोई 25 किलो वजन उठा कर लाया था ।अब हम  आगे की और चल पड़े ।रात को जो पानी कुत्ते का जूठा होने के कारण नही पिया था अब उसी बाल्टी से पानी पी लिया और बोतल में भी भर लिया।हमे कोई अंदाज नही था कि आगे पानी कहाँ मिलेगा कल मैं तो पानी की वजह से बहुत परेशान हुआ था कल सारा रास्ता जंगल का था इस लिए धूप नही लगी वरना प्यास और भी तंग करती।  मुझे बाद में बब्बू और अक्षय ने बताया अभी थाचडू नही आया है  और चलना पड़ेगा फिर पहुचेंगे थाचडू। रात को जब टेंट में पहुंचे थे तो सोचा था थाचडू पहुच गए अब चड़ाई कम होगी पर जब पता चला अभी और चलना है थाचडू के लिए तो , तो क्या अब चलना पड़ेगा क्योंकि और कर भी क्या सकते थे। सुबह सुबह थोड़ी ठण्ड थी और रात को आराम भी किया था तो अभी ज्यादा दिक्कत नही हो रही थी चलने में ।अक्षय बब्बू और जोशी का स्टैमिना बहुत अच्छा है वो आगे निकल गए आज कौन सी नई बात है वो तो कल भी आगे ही चल रहे थे। मैं और जीजा जी पीछे पीछे चल रहे थे ।अभी भी रास्ता जंगल का ही था लेकिन आज रास्ता थोड़ा खूबसूरत था आज पेड़ तो थे पर झाड़िया कम थी।दिल लग रहा था चड़ाई करने में बीच बीच मे आगे वालो को आवाज़ लगा देता था बब्बू भी आवाज लगा देता था कभी कभी। वो भी ज्यादा दूर नही थे पेड़ ज्यादा होने के कारण वो कभी कभी दिखाई देते  थे ।कल के मुकाबले आज ज्यादा मजा आ रहा था चलने में कुछ शरीर भी आदी जो गया था चलने का । जीजा जी आज भी पीछे रह जाते थे पर आज वो अपना सामान खुद उठा कर चल रहे थे जिस का सब से ज्यादा फायदा मुझे हुआ कल ज्यादा वजन उठाने से मेरे कन्धे छिल गए थे ।जब थाचडू आने वाला था तो वहाँ से श्रीखंड शिला के दर्शन होते है सब को हुए मुझे छोड़ कर मुझे पता भी नही था कि यहां से दर्शन होते है बाकी तीनो आगे थे इस लिए किसी ने उनको बता दिया होगा । चलो आज नही हुए पर कोई बात नहीं पास से ही दर्शन करूँगा
  थोड़ा और चलने पर थाचडू भी आ गया वो तीनो तो पहले ही पहुँच गए थे ।मैं और जीजा जी 10 मिनेट बाद में पहुंच गए ।वो तीनो चाय पी रहे थे एक दुकान पर ।अभी दुकान वाले के पास दूध नही पहुचा था इस लिए काली चाय ही बनी थी ।2 कप हमारे भी बन गए चाय बहुत बढ़िया बनी थी मैंने पहली बार पी काली चाय । खाना भी था यहाँ पर ।खाने में परांठे और मैगी थे ।तो परांठो का ऑडर दे दिया दुकान वाले ने बताया आगे भी टेंट और खाना मिल जाएगा ।हम ने सोचा फिर इतना वजन क्यू उठाना तो सभी ने थोड़ा थोड़ा समान यही पर एक बैग में डाल कर रख दिया ।हमारे पास 3 टेंट थे।एक मेरा और बब्बू का एक जोशी का था और एक अक्षय  और जीजा जी का था ।सोचा एक टेंट को यही छोड़ देते है। एक मे हम तीन और एक मे दो लोग सो जायेगे।  वजन कुछ कम हो गया था अब।इतने में परांठे भी बन गए थे। जिस को जितनी भूख थी उतने खाये और एक एक कप चाय और पी ।अब काफी समय हो गया था यहाँ रुके हुए तो हम आगे  की और चल पड़े ।हम सोच रहे थे रात को पार्बती बाग रुकेंगे पर जीजा जी की वजह से थोड़ा मुश्किल लग रहा था वैसे भी दुकान वाले ने बोला था पार्वती बाग नही पहुंच पाओगे आप। वैसे  हम ने सुना था थाचडू के बाद चड़ाई थोड़ी कम हो जाती है पर चड़ाई थाचडू के बाद भी थी ।पर अब पेड़ नही थे तो दूर दूर तक दिखाई दे रहा था ।जब दूर दूर तक दिखाई देने लगता है तो ट्रेकिंग करने में मजा आने लगता है। मौसम बिल्कुल साफ था रास्ते मे कुछ यात्री वापिस आते हुए भी मिल रहे थे सभी से मैं  2 सवाल पूछ रहा था
1 दर्शन हुए और दूसरा काली घाटी कितनी दूर है और दोनों सवालो के जवाब ज्यादातर खतरनाक होते थे दर्शन दूर से हुए मुश्किल से एक दो ने कहा होगा जी हां हम शिला के पास गए बाकी सब रस्ते में से ही वापिस आ रहे थे और दूसरे सवाल के जवाब होता था काली घाटी अभी दूर है। रास्ते में एक जगह ऐसी भी आई जहाँ देखने पर लगा रास्ता कहाँ पर है ।यही पर एक पथर पर हम बैठ गए थोड़ी देर में जीजा जी भी आ गए। जब पास गए तो रास्ता दिख तो गया पर था एकदम खड़ी चड़ाई वाला पर ज्यादा लम्बा नही था । इसके बाद रास्ता ज्यादा मुश्किल नही था ।आज सुबह से ही मुझे कोई ज्यादा दिक्कत नही आई बल्कि जीजा जी को छोड़ कर किसी को भी कोई दिक्कत नही आई जीजा जी काफी पीछे रह जाते थे । इस बार मैं भी उनके लिए ज्यादा नही रुका ।रास्ता भी ठीक था कल के मुकाबले इस लिए सोचा जीजा जी आ ही जायेंगे ।अभी पहाड़ो पर घास ज्यादा हरी नही थी पर अच्छी लग रही थी दूर पहाड़ो पर पड़ी बर्फ भी दिखने लगी थी ।रास्ते मे अब चड़ाई तो थी पर  ज्यादा मुश्किल नही थी। थोड़ी देर चलने के बाद  काली घाटी भी आ गई। वो तीनो पहले ही पहुच गए थे यहाँ मोबाईल का नेटवर्क भी था ।  जोशी घर पर वीडियो कॉल कर रहा था और बब्बू फेसबुक पर लाइव था अक्षय भाई फ़ोटो ले रहे थे मैंने सब से पहले अपना सामान रखा और फिर बब्बू के पास गया सोचा  फेसबुक लाइव पर अपनी शक्ल भी दिखा दूँ। यहाँ पर माँ काली का एक छोटा सा मन्दिर बना हुआ है  वहाँ पर माथा टेका और आगे की यात्रा के लिए दुआ मांगी।जब यहाँ पर पहुंचे तो मौसम भी थोड़ा बदल गया था धुन्ध पड़ने लगी थी ऐसा लग रहा था हम बदलो के ऊपर बैठे है। यहाँ पर भी दुकाने अभी लग रही थी ।खाना तो अभी नही बन रहा था पर चाय मिल रही थी तो दुकान वाले से चाय बनवाई तब तक जीजा जी भी आ गए । उनको घुटने में अब ज्यादा तकलीफ हो रही थी उनको आगे का रास्ता दिखाया जो काली घाटी से भीम तलाई तक एकदम नीचे उतरता है।तो वो बोले मैं आगे नही जा पाऊंगा। वैसे काली घाटी से भी शिला के दर्शन होते  है पर आज बादल थे इस लिए दर्शन नही हुए । जीजा जी को बोला आप यही रुको कल सुबह दर्शन करके वापिस चले जाना तो वो थोड़े भाबुक हो गए ।थोड़ी देर रुक कर जीजा जी को वही छोड़ कर हम चारो आगे चल पड़े ।काली घाटी के बाद एकदम नीचे उतरना पड़ा। एकदम सीधी डलहान उतरते हुए हम सोच रहे थे इस पर चड़ेगे कैसे । पूरे रास्ते मे पथर थे इस लिए थोड़ी मुश्किल हो रही थी ।ये डलहान ज्यादा देर नही रहती ऐसी उतराई दो तीन बार आती है ।थोड़ी देर बाद रास्ता ठीक हो गया इस बार जोशी सब से आगे चल रहा था हम तीनों काफी पीछे रह गए थे कारण हम रास्ते मे फ़ोटो लेते हुए जा रहे थे।अगर ऐसी जगह पर फ़ोटो नही खींचेगे तो वहाँ जाने का फायदा ही क्या ।फ़ोटो खीचने का जिम्मा अक्षय भाई का था और हमारा खिंचवाने का ।
काली घाटी के बाद पानी की कोई दिक्कत नही आती छोटे बड़े झरने आते रहते हैं ।एक बड़े झरने के पास हम आराम करने के लिए रुक गए जोशी भी यही बैठा था । हमारे पहुचते ही वो आगे चल पड़ा। हम ने रुक कर सब से पहले कुछ फोटो खींचे फिर थोड़ा रसना और जलजीरा बना कर पिया और बोलत में पानी भर कर आगे बड़ गए। मौसम सुबह से ही बडिया था ।भीम तलाई पर हम रुके नही अभी थोड़ी देर पहले तो आराम किया था तो सोचा अब कुंशा जा कर ही आराम करेगे । हम तीनों आराम से कुदरत के नजारो को देखते हुए चल रहे थे और सोच रहे थे हम कितने खुशनसीब है जो इन पहाड़ो,झरनों, फूलों और पेड़ ,पौधों को इतने करीब से देख रहे हैं अगर कुदरत के इन नजारो को करीब से देखना है तो कुछ कठनाईयों का सामना तो करना ही पड़ेगा । जोशी जी को ज्यादा ही जोश आ गया लगता था वो काफी आगे निकल गए थे। झरने पर जब वो मिले थे तो उनको बोला था भीम द्वारी पर जो सबसे पहली दुकान आएगी वहाँ रुक जाना इस लिए हम तीनों आराम से मजे लेते हुए चल रहे थे ।हमे पता था जोशी खाना बनवा लेगा अगर हम लेट भी हो गए । कुंशा पहुच कर दिल खुश हो गया नजारे ही कुछ ऐसे थे चारो तरफ घास थी वो भी हरी भरी कई तरह के छोटे छोटे  फुल भी खिले हुए थे । यहाँ पर भी थोड़ा फोटो शूट हुआ ।अक्षय का  तो जहाँ से जाने के लिए मन ही नही कर रहा था।पर जाना तो था ही।यहाँ भी कुछ दुकाने लग रही थी अभी कुछ दिनों बाद जहाँ पर भी खाना और रहने की जगह मिलने लगेगी । कुंशा के बाद हम ज्यादा नही रुके बस एक जगह रुक कर घर पर फ़ोन किए सारे रास्ते मे अभी तक bsnl और jio का नेटवर्क मिल रहा था airtel का बहुत कम मिला। यहाँ से जब हम आगे चल रहे थे तो एक पहाड़ी बच्चा मिला उसका नाम  रोहित था । उसने बताया  उसके चाचा और दादी ने भीम द्वारी में दुकान लगा रखी है। वो यहाँ ग्राहक ढूंढने के लिए बैठा था। यही से वो यात्रियों को अपनी दुकान पर रहने के लिए ले जाता है। वो भी हमारे साथ चलने लगा।हम उस से आगे के रास्ते की जानकारी लेने लगे उसने बताया वो भी कल नैनसरोवर तक नहाने जाएगा।
 हम उसके साथ बाते करते हुए चलते रहे ।अब हमें भीम द्वारी तो दिखने लगा था पर जोशी कहीं नही दिख रहा था। थोड़ा अंधेरा भी होने लगा था ।थोड़ी देर बाद हम रोहित के चाचा की दुकान पर पहुच गए वहाँ पर पता किया जोशी के बारे मे तो उन्होंने बताया वो आगे चला गया है। हमने जोर जोर से आवाज़े भी लगाई पर जोशी नही मिला । करीब आधा किलोमीटर दूर हमे कुछ औऱ टेंट दिखे हमे लगा जोशी वहाँ पर होगा हम भी उसी तरफ चल पड़े । वहाँ पहुच कर एक दुकान वाले से पता किया उसने बताया आप का साथी तो पार्वती बाग चला गया है हमे बहुत गुस्सा आया जब उसे बोला था भीम द्वारी रुकना तो वो आगे कैसे जा सकता है ग्रुप में अगर कोई बात हो गई तो उसे सभी को मानना चाहिए ।पर अब अंधेरा काफी हो गया था और थकावट भी हो रही थी तो हमने यही रुकने का मन बना लिया ।एक अच्छी सी जगह देख कर हमने अपना टेण्ट लगा लिया और सामान रख कर दुकान में कुछ खाने के लिए चल पड़े ।दुकान वाले को मैगी बनाने का बोल कर हम उसकी दुकान में रखी रजाई में घुस गए ।ठण्ड काफी हो गई थी ।पहले मैगी खाई फिर चाय पी।थोड़ी देर दुकान वाले से बाते करते रहे थोड़ी जानकारी आगे के रास्ते की भी ली। बैठे बैठे अक्षय भाई ने टेंट वाले से एक रजाई मांग ली टेंट वाले ने बोल दिया ले लो पर किराया 100 रु बताया पर 50 रु में मान गया।दुकान वाले से  पूछा सुबह चाय मिल जाएगी 4 बजे । बोला दे दूंगा मगर आप उठा देना सुबह ।उसके बाद हम अपने टेंट में आ गए रजाई को हमने नीचे बिछाया ता के नींद अच्छी आ जाए और नीचे से ठंड भी कम लगे। और हमने सुबह साथ एक बैग ही लेकर जाने की सोची थोड़ा सा खाना और टोर्च वगैरा एक बैग में रखे बाकी को यही छोड़ देंगे ।सुबह जल्दी जाना था आगे इस लिए सुबह 3 बजे का अलार्म लगा कर हम  स्लीपिंग बैग में घुस कर सो गए ।

 श्रीखण्ड यात्रा का तीसरा भाग पड़ने के लिए यहाँ क्लिक करे

काली घाटी में माँ काली का मंदिर
एक सेल्फी भी हो जाए
हम भी सैल्फी लेंगे

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया शर्मा जी । हर हर महादेव...

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  2. बहुत बढ़िया लिखा रुपिंदर भाई

    पहले से बहुत अधिक सुधार है जी।
    एक नम्बर का लेख।

    आणि हाँ, ये तो बताओ कि एक टेंट में ही हम 3 जने सोए थे

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  3. बहुत अच्छा लिख रहे है आप
    । जय भोलेबाबा।

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  4. श्रीखंड महादेव की यात्रा पढ़ना अपने आप मे एक दिव्य अनुभव है....कही भी पोस्ट में लंगर का जिक्र नही हुआ....लंगर नही थे क्या भाई

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    1. नही भाई हम एक महीना पहले गए थे यात्रा शुरू होने से

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