शुक्रवार, 10 अगस्त 2018

किन्नर कैलाश यात्रा 2017 भाग -1

                    | हर हर महादेव|
पिछले ब्लॉग में मैंने श्रीखंड कैलाश यात्रा का वर्णन किया था इस बार एक और कैलाश किन्नर कैलाश की बात करते हैं ।वैसे मैंने पहले भी किन्नर कैलाश का ब्लॉग लिखा था पर वो ज्यादा डिटेल में नही था और वो अब डिलीट भी हो गया इस लिए अब अच्छे से दुबारा लिखने की कोशिश करूँगा ।भोले के 5 कैलाश की यात्रा करने का मन मे काफी पहले से सोच रखा था इस की शुरुआत पिछले साल मणिमहेश से हो गई है और इस साल दूसरा कैलाश किन्नर कैलाश जाना है। किन्नर कैलाश सभी कैलाशो में से सब से कठिन माना जाता है यहाँ पर सुविधा भी नाममात्र की है। इस यात्रा की तैयारिया मणिमहेश से आने के फौरन बाद शुरू हो गई थी। जब भी समय मिलता यूट्यूब और गूगल पर सर्च करता रहता पर इस यात्रा के बारे में कम ही वीडियो और ब्लॉग है। ब्लॉग तो मुझे सिर्फ संदीप पोवार जी का ही मिला।इस से काफी जानकारी मिली ।मेरे साथ जो पिछले साल मणिमहेश गए थे उन सब दोस्तो से पूछा आप लोग जाओगे तो सिर्फ बब्बू ने ही हाँ बोली बाकी सब यात्रा की वीडियो देख कर ना बोल गए।लेकिन मैं और बब्बू का पक्का था जो हो जाए हम पक्का जाएंगे ।इस के बाद फेसबुक पर यात्रा के बारे में और पता करने लगा तो एक ग्रुप में  अक्षय जी से बात होने लगी वो भी यात्रा पर जाना चाहते थे उनके साथ फ़ोन पर भी कई बार बात हुई तो हम ने तय कर लिया हम तीनों इक्कठे चलेंगे धीरे धीरे दिन निकल गए और जुलाई का महीना भी आ गया ।वैसे तो यात्रा 1 अगस्त से 11 अगस्त तक चलती है पर हम ने 15 जुलाई को जाने का मन बना लिया ।आप ये मत सोचना यात्रा 1 अगस्त को शुरू होती है तो आप को सभी सुविधा मिलेगी लंगर सिर्फ नीचे पोवारी में ही लगते है ऊपर सिर्फ गणेश पार्क में आप को कुछ प्राइवेट दुकाने मिलेगी उस से आगे गुफा के पास कोई सुविधा नही है आप अगर अपना टेंट लेकर जाओगे तो ठीक है ।नही तो आप को गुफा में ही रात गुजारनी पड़ेगी वहाँ का भी एक पंगा है गुफा में 15 लोगो के करीब सौ सकते है ज्यादा से ज्यादा पांच छे लोग ओर बैठ सकते हैं अगर अगर कभी इस से ज्यादा लोग हो जाए वहाँ तो बारिश में दिक्कत हो सकती है ।
                    अब हम अपनी यात्रा की बात करते हैं  जब  हमारे यात्रा पर जाने के दिन पास आए तभी मुझे अपनी दुकान में कुछ ऐसी दिक्कत आ गयी के मुझे लगा मैं इस बार नही जा पाऊंगा कुछ दिन यात्रा भी आगे कर के देख लिया पर दिक्कत कम नही हुई।
           फिर मैंने सोचा अक्षय जी की यात्रा क्यू खराब करनी तो उनको फ़ोन करके बोल दिया भाई आप चले जाओ अभी हमारा पक्का नही है और हो सके तो भोले से हमारे लिए दुआ करना क्या पता वो मान जाए ।तो वो बोले कोशिश कर लो क्या पता कुछ हल निकल आए कोशिश की भी मैंने पर बात नही बनी तो अक्षय जी चले गए ।जिस दिन वो गए अगले दिन मेरी समस्या भी हल हो गई तो मैं भी तैयार हो गया जाने के लिए बब्बू को फ़ोन किया तो वो बोला भाई मेरा बैग तो पैक है जब मर्जी बोल दो आ जाऊंगा ।तो उसी समय मैंने चंडीगड़ से रामपुर की बस की 2 टिकट बुक कर दी और एक दिन छोड़ कर हम यात्रा पर जाने वाले थे हम दोनों बहुत खुश थे पर अभी एक समस्या और आ गई जिस दिन हमने जाना था उस से एक दिन पहले मुझे बुखार हो गया गला बहुत खराब हो गया था डॉक्टर से दवा ली पर ज्यादा आराम नही आया खाना भी नही खाया । हमारी बस चंडीगड़ से शाम को 7 बजे की थी तो हम संगरूर से 3 बजे निकलने की सोच रहे थे ।तो सुबह फिर दवा ली कुछ आराम आया पर मैंने सोचा रखा था जाना पक्का है जो भी हो जाए ।एक बार अक्षय को भी फ़ोन करके देखा फ़ोन बन्द आ रहा था पर थोड़ी देर बाद फ़ोन मिल गया अक्षय जी दर्शन करके वापिस आ रहे थे ।तो उनको बता दिया हम भी आ रहे हैं आप वही रुकना हम सुबह आप से मिलेंगे वो मान गए ।तो दोपहर 3 बजे हम संगरूर से चंडीगड़ की बस में बैठ गए बस 6 बजे के करीब चंडीगड़ पहुँच गई। अभी समय था तो सोचा कल रात से मैंने कुछ नही खाया था तो यहां कुछ खा लूँ तो यही बस स्टैंड में बने होटल में हमने खाना खा लिया अब गला भी ठीक लग रहा था। खाना खा कर हमने बस का पता किया तो वो अपने काउंटर पर लग गई थी । हमारी टिकट तो पहले से बुक थी तो हम अपनी सीट पर जाकर बैठ गए ।अगर किसी ने किन्नर कैलाश या श्रीखंड कैलाश बस से जाना हो तो वो चंडीगड़ से रात को 7बजे जा 8 बजे वाली बस से जा सकता है ।किन्नर कैलाश के लिए तो आप को ये बस पोवारी में लंगर के बिल्कुल आगे उतारेगी पर श्रीखंड के लिए आप को रामपुर उतर कर बस बदलनी पड़ेगी।

अब हम अपनी यात्रा पर आ जाते है ।आज गर्मी बहुत थी बस में बैठने का अभी मन नही था सोचा जब चलेगी तभी बैठ जायेगे पर बब्बू बोला नही तू चल बस में अपनी सीट पर बैठते है तो मुझे बैठना ही पड़ा । बस में भीड़ भी काफी थी ।अच्छा किया हमने अपनी टिकट पहले ही बुक कर ली नही तो पंगा हो जाता ।पंगा से याद आया हमारी बस में भी एक पंगा हो गया एक सीट पर एक लड़का बैठा था तो एक अंकल ने आ कर कहा ये मेरी सीट है ये देखो मेरी टिकट पर यही नम्बर है लड़के ने ऑनलाइन टिकट बुक की थी एक बार तो हमे भी लगा यार हमने भी ऑनलाइन बुक की है कहीं कोई हमे भी न उठा दे आ कर काफी देर तक वो लड़ते रहे जब कंडक्टर आया तो उस ने बताया अंकल की टिकट 8 बजे की बस की है तो जा कर झग़डा खत्म हुआ ।बस अपने सही समय पर चल पड़ी ।जितनी देर हम चंडीगड़ में रहे गर्मी भी लगती रही जब बस चंडीगड़ से बाहर निकली तो जाकर कुछ राहत मिली ।शिमला से कुछ पहले ये बस खाना खिलाने के लिए एक ढाबे पर रुकती है हम भी उतर कर ढाबे पर आ गए भूख तो नही थी पर फिर भी 2-2 रोटी खा ली। खाना खा कर सभी बस में आ गए तो बस आगे चल पड़ी सारी रात बस में जाग कर ही निकाली। रामपुर जा कर बस बदली अगर आप ने बस की टिकट चंडीगड़ से पोवारी की ली है तो बस बदलने पर आप को दुबारा टिकट नही लेनी पड़ती हमारी टिकट रामपुर तक कि थी तो हमने टिकट ले ली रामपुर के बाद भी बस एक बार चाय के लिए रुकती है। बस जिस जगह रुकी वहाँ कुछ समय था हमारे पास तो हमने टॉयलेट जाने का काम भी निपटा दिया  ।यहाँ पर पहाड़ बड़े खूबसूरत लग रहे थे ।सुबह का समय था तो हल्की सी धुन्ध भी थी जिस से पहाड़ और भी सुंदर लग रहे थे।जब हम चाय पी रहे थे तो हमारी बात दुकानवाले और बस के कन्डक्टर से हुई हमने बताया हम किन्नर कैलाश जा रहे है।तो उन्होंने हमें बताया आप कोशिश करना अकेले मत जाना कोई पोटर जा कोई ऐसा यात्री हो जो पहले गया हो उसको साथ मे ले जाना इस से आप को काफी मदद मिलेगी और बस कन्डक्टर ने हमे 11 रुपए दिए और बोला मेरा भी माथा टेक देना।रामपुर के बाद दिन भी निकल गया था तो अब बाहर के नजारे भी दिख रहे थे सतलुज के किनारे  बस जब जाती है तो बहुत मजा आता है ।पूरा रास्ता अच्छा बना है रोड बहुत साफ था ।सतलुज के किनारे पड़े पथरो को  पानी की जोरदार लहरों ने अलग अलग शेप दे दी है जिन्हें देख कर अच्छा लग रहा था।  बस ने हमे 9 बजे के करीब पोवारी में उतार दिया ।यहां पर हमने अक्षय जी को फ़ोन किया तो वो लंगर में थे हम भी वही चले गए ।उनसे मिलकर बहुत अच्छा लगा थोड़ी देर बात की रास्ते के बारे में पता किया कैसे और क्या करे यात्रा करते समय उन्होंने सब अच्छी तरह बता दिया।लंगर में काफी अच्छा प्रबन्द किया हुआ था।यात्री यहाँ खा पी सकते है और रात को रहने की भी व्यवस्था है ।टॉयलेट और नहाने की भी व्यवस्था है ।हमने फ्रेश होने के बाद थोड़ा बहुत खा पी कर जो फालतू समान था वो यही लंगर में रख दिया लंगर वालो ने हमे पानी की बोतल ,गुलुकोस,और डण्डे दिए ये सब हमे चड़ाई में बहुत काम आएंगे।ये सब ले कर हम यात्रा के लिए चल दिए। यहां पर हमें पंजाब के नंगल से आए हुए 3 और यात्री मिले ये हमारे साथ बस में ही आए थे। वैसे हम इनके साथ जाने से डर रहे थे कारण ये था कि बस में ये हमारी सीट की पिछली सीट पर बैठे थे और जो इनका लीडर था वो बोल रहा था हम आज चल कर शाम को सीधा गुफा में रुकेंगे ओर अगले दिन दर्शन करके वापिस गणेश पार्क आ जाएगे ओर अगले दिन दोपहर को नीचे पोवारी में पहुंच जाएंगे इस लिए हमे लगा ये तो बहुत अच्छे ट्रैकर है अगर हम इनके साथ चले तो हमारी हालत खराब हो जाएगी और बेज्जती अलग से हो जाएगी।पर फिर हमें बस कंडक्टर की बात याद आ गयी के अकेले मत जाना मुश्किल हो सकती है ।तो हम सभी साथ साथ ही चल पड़े सब से पहले हमें सतलुज  को पार करना पड़ता है उसे आप तार पर लटकी टोकरी में बैठ कर या थोड़ा दूर जा कर पुल से पार कर सकते है। हमने टोकरी से पार किया। इसे पार करने का भी अपना ही रोमांच है। इसे पार करके हम ने यात्रा शुरू कर दी ।अभी समय 11:30 हुआ था ।शुरू में तांगलिंग गांव आता है रास्ते के दोनों और सेब के पेड़ थे लाल और हरे दोनो तरह के सेब से लदे पेड़ बहुत अच्छे लग रहे थे।कई घरों में अंगूर की बेल भी लगी थी मैंने कुछ अंगूर तोड़ लिए जब खाएं तो एकदम खट्टे थे ।बब्बू ने मुझे बोला भी भाई मत तोड़ कोई देख लेगा तो गाली देगा ।मैं तो सेब भी तोड़ने वाला था पर बब्बू ने तोड़ने ही नही दिए ।
                        हम पांचो में सब से आगे नंगल वालो में से एक डॉक्टर थे वही नगल वालो के लीडर भी थे वो आगे निकल गए मैं और बब्बू उनके बाद साथ साथ ही चल रहे थे बाकी दो सरकारी मास्टर थे वो पीछे आ रहे थे।यात्रा के शुरू में ही पता चल जाता है कि यात्रा कितनी कठिन होने वाली है। करीब एक घण्टे  बाद हम एक नाले के पास पहुंचे काफी पानी था इस मे इसको पार करने के लिए एक पेड़ को काट कर इसके ऊपर रखा गया था। इसको बड़े  ध्यान से पार किया ।इसके बाद फिर एकदम चड़ाई आ गई हम भी चलते रहे ।अब रास्ता जंगल वाला था पर यह किसी जानवर का डर नही होता। हम दोनों चलते रहे  चड़ाई एकदम खड़ी थी तो थोड़ी दिक्कत हो रही थी चड़ने में तो थोड़ी देर बाद रुक जाते फिर चल पड़ते डॉक्टर साहिब आगे आगे जा रहे थे उम्र में वो 45+ के होंगे और हम अभी 30 के भी नही थे पर वो हमसे तेज थे चलने में ।जो भी इस यात्रा में गए है उन्हें पता है इस यात्रा में आप को कितनी ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है ।आज गर्मी बहुत थी चड़ते हुए और भी ज्यादा लग रही थी। मेरे पास 2 पानी की बोतल थी और बब्बू के पास एक ,2 बोतल तो हमारी खत्म भी हो गयी थी ।जब हम यात्रा शुरू कर रहे थे तो एक लोकल औरत ने हमे कहा इतना पानी क्यू उठा रखा है रास्ते मे मिल जाएगा इस लिए बब्बू ने एक पानी की बोतल निकाल दी थी और एक रख ली पर हमें नीचे नाले के बाद गणेश पार्क तक पानी नही मिला वहाँ भी जो पानी मिला उसमे मिट्टी बहुत आ रही थी ।अब काफी समय हो गया था चलते हुए तो एक जगह रुक कर कुछ आराम किया तब तक दोनों मास्टर भी आ गए। थोड़ा आराम करके हम फिर चल पड़े। थोड़ी देर बाद हमे ऊपर से कोई आता दिखा जब   पास आये तो देखा 1 विदेशी महिला और उस का पोटर थे। कमाल की बात है इस यात्रा का हमारे यहाँ बहुत कम लोगो को पता है और ये विदेशी हमे यात्रा करते हुए मिली ।2,3 यात्री हमे एक जगह आराम करते हुए मिले हम भी वही बैठ गए।मुझे हल्का हल्का भुखार लग रहा था गला भी दुबारा दर्द करने लगा था।तो बब्बू से दवा ली वैसे तो बब्बू जानवरो के डॉक्टर है पर आज कल इंसानो और जानवरों में ज्यादा फर्क भी नही है इस लिए किसी भी यात्रा पर जाते समय दवाई की जिमेवारी बब्बू की ही होती है।दवा लेकर मैंने कुछ देर आराम किया और फिर चल पड़े।दवा का असर भी थोड़ी देर में होने लगा था।थोड़ी देर ऐसे ही चलते रहे इस यात्रा के पूरे रास्ते मे आप को पानी बहुत कम मिलता है इस लिए जब आप इस यात्रा पर आओ तो पानी जरूर साथ लेकर चलो ।पूरे रास्ते मे आप को एकदम खड़ी चड़ाई ही मिलती है सीधा रास्ता तो बिल्कुल नही मिलता ।अभी यात्रा अधिकारीक तौर पर शुरू नही हुई थी इस लिए यात्री कम ही मिल रहे थे ।कम जरूर थे पर जो मिल रहे थे वो पूरे जोश में थे जब भी कोई मिलता तो उसे जय भोले की जरूर बोलते ।कुछ लोकल लड़के भी मिले ऊपर जाते हुए पर उनका ध्यान यात्रा से ज्यादा सुट्टा लगाने में था। थोड़ी देर  चलने के बाद हमे 2 टेंट लगे मिले नंगल वाले  डॉक्टर जी यही पर बैठे थे थोड़ी थोड़ी बारिश भी होने लगी थी हम भी यही बैठ गए तो डॉक्टर जी बोले क्यू न हम आज यही रुक जाए उनके दोनों साथी भी काफी पीछे रह गए थे।मैं और बब्बू अभी और चल सकते थे अभी इतनी थकावट नही हुई थी।पर बारिश की वजह से हम रुक गए वैसे बारिश भी थोड़ी देर में रुक गई थी।
पर  फिर हम आगे नही गए सोचा आगे कोई टेंट नही मिला तो क्या करेंगे।टेंट वाले को चाय बोल दी थोड़ी देर आराम किया तब तक चाय और दोनों नंगल वाले भी आ गए ।उनकी हालत काफी खराब थी ।आते ही उनको चाय पिलाई। अभी 5: 30 ही बजे थे हमने सोचा खाना भी खा लेते है और जल्दी सो जायेगे और कल सुबह जल्दी आगे चल पड़ेंगे।टेंट वाले से परांठे बनवाए और खा कर सो गए नींद भी जल्दी आ गई पर रात को 8 बजे टेंट वाले ने फिर आवाज लगा दी खाना खाओगे अरे भाई हम इंसान है अभी तो खाया था खाना हमे नही खाना कुछ तू जा।डॉक्टर साहिब खराटे बहुत जोर से मार रहे थे उसके बाद नींद ही नही आई ।मैं और बब्बू सारी रात टेंट वाले को गाली देते रहे न वो उठाता न हम सारी रात जाग कर निकलते और सुबह टेंट वाले को फेस टू फेस भी काफी कुछ बोला (देना तो मैं गाली चाहता था पर सोचा इसका इलाका है कही पिटाई न कर दे इस लिए चुप रहा) भाई तेरी वजह से रात  पूरी एक सदी जितनी लम्बी हो गयी थी सारी रात हमने जाग कर निकाली तो वो कुछ नही बोला।तो दोस्तो अभी तक बस इतना ही बाकी अगले भाग में।
यात्रा की वीडियो देखने के लिए यहाँ क्लिक करे



7 टिप्‍पणियां:

  1. बहूत अच्छा लिखा है भाई जै भोले नाथ

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  3. मैं भी कहूँ ये रुपिंदर भाई दोबारा क्यों लिखने लगे किन्नर कैलाश जी का यात्रा वृतांत
    अब समझ मे आया।

    बहुत बढ़िया लिखा है भाई... वो यात्रा इकठ्ठे करने का मन था पर भोलेनाथ जी को अलग अलग ही मंजूर था।

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